मैं तुम्हारी बांसुरी में स्वर भरूँगा । एक स्वर ऐसा भरूँ कि तुम जगत को भूल जाओ; एक स्वर ऐसा भरूँ कि चंद्रको तुम चूम आओ, स्वर -सुधा तुममें बहाकर, ताप सब पल में हरूँगा । स्वर भरूँगा।।
तार कुछ ऐसे मिले कि स्वर्ग तुम भू पर उतारो, मरण को देखकर चुनौती स्नेह से जीवन सँवारो; जागरण की ज्योति से मैं तब तुम्हें ज्योतित करूंगा। स्वर भरूँगा।।
दूर, - उस ध्रुवतारिका में लक्ष्य तुम अपना निहारो; प्रेम-गंगा में नहा कर, मुक्ति का घूँघट उघारो, मुग्ध बासंती पवन बन सुरभि-घन तुम पर मरूंगा। स्वर भरूँगा।।
ज्वार कुछ ऐसा उठे जो दो तत्वों को एक कर दे; प्यार की अठखेलियां से, मृत्यु का अभिषेक कर दे; मिलन का मधु-पर्व होगा, और मैं तुमको वरुंगा। स्वर भरूँगा।।
मैं तुम्हारी बांसुरी में स्वर भरूँगा ।
- नर्मदा प्रसाद खरे
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