तुमने मुझको देखा मेरा भाग खिल गया । मेघ छ्टे सूरज निकला हिल उठीं दिशाएं, दूर हुईं पथ से बाधा मनसे चिंताएं, तुमने अंक लगाया मेरा शाप धुल गया ।
केंचुल छूटी आज नया मैं रूप रहा धर ज्योति हृदय के भीतर ज्योति हृदय के बाहर, तुम मुस्काए सपनों को आकार मिल गया ।
धरती के नूपुर नभ की बांसुरिया बाजे, मेरे आगे खुलते से जाते दरवाजे, तुम कुछ बोले मुझको जीवन सार मिल गया ।
श्री गिरिधर गोपाल [ राष्ट्र भारती, नवंबर 1953]
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