मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
फूलवाली (काव्य)  Click to print this content  
Author:रामकुमार वर्मा

फूल-सी हो फूलवाली।
किस सुमन की साँस तुमने
आज अनजाने चुरा ली!
जब प्रभा की रेख दिनकर ने
गगन के बीच खींची।
तब तुम्हीं ने भर मधुर
मुस्कान कलियाँ सरस सींची,
किंतु दो दिन के सुमन से,
कौन-सी यह प्रीति पाली?
प्रिय तुम्हारे रूप में
सुख के छिपे संकेत क्यों हैं?
और चितवन में उलझते,
प्रश्न सब समवेत क्यों हैं?
मैं करूँ स्वागत तुम्हारा,
भूलकर जग की प्रणाली।
तुम सजीली हो, सजाती हो
सुहासिनि, ये लताएँ
क्यों न कोकिल कण्ठ
मधु ऋतु में, तुम्हारे गीत गाएँ!
जब कि मैंने यह छटा,
अपने हृदय के बीच पा ली!
फूल सी हो फूलवाली।

-रामकुमार वर्मा

 

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