माँ की याद बहुत आती है !
जिसने मेरे सुख - दुख को ही , अपना सुख-दुख मान लिया था । मेरी खातिर जिस देवी ने, बार - बार विषपान किया था । स्नेहमयी ममता की मूरत, अक्सर मुझे रुला जाती है । माँ की याद बहुत आती है !
दिन तो प्यार भरे गुस्से में, लोरी में कटती थीं रातें । उसका प्यार कभी ना थकता, सरदी - गरमी या बरसातें । उस माँ की वह मीठी लोरी, अब भी मुझे सुला जाती है । माँ की याद बहुत आती है !
माँ, तेरे आँचल का साया, क्यों ईश्वर ने छीन लिया है ? पल-पल सिसक रहा हूँ जबसे, तूने स्नेह-विहीन किया है । तुमसे जितना प्यार मिला, वह मेरे जीवन की थाती है । माँ की याद बहुत आती है !
बचपन, वह कैसा बचपन है, माँ की छाँव बिना जो बीता ! माँ जितना सिखला देती है, कहाँ सिखा सकती है गीता ! माँ के बिन सब सूना जैसे, तेल बिना दीपक - बाती है । माँ की याद बहुत आती है !
- डॉ. शम्भुनाथ तिवारी प्रोफेसर हिंदी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़(भारत) संपर्क-09457436464 ई-मेल: sn.tiwari09@gmail.com
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