काका से कहने लगे ठाकुर ठर्रा सिंह दाढ़ी स्त्रीलिंग है, ब्लाउज़ है पुल्लिंग ब्लाउज़ है पुल्लिंग, भयंकर गलती की है मर्दों के सिर पर टोपी पगड़ी रख दी है कह काका कवि पुरूष वर्ग की किस्मत खोटी मिसरानी का जूड़ा, मिसरा जी की चोटी।
दुल्हिन का सिन्दूर से शोभित हुआ ललाट दूल्हा जी के तिलक को रोली हुई अलॉट रोली हुई अलॉट, टॉप्स, लॉकेट, दस्ताने छल्ला, बिछुआ, हार, नाम सब हैं मरदाने पढ़ी लिखी या अपढ़ देवियाँ पहने बाला स्त्रीलिंग जंजीर गले लटकाते लाला।
लाली जी के सामने लाला पकड़ें कान उनका घर पुल्लिंग है, स्त्रीलिंग दुकान स्त्रीलिंग दुकान, नाम सब किसने छांटे काजल, पाउडर, हैं पुल्लिंग नाक के कांटे कह काका कवि धन्य विधाता भेद न जाना मूँछ मर्दा को मिली, किन्तु है नाम जनाना।
ऐसी – ऐसी सैंकड़ो अपने पास मिसाल काका जी का मायका, काका की ससुराल काका की ससुराल, बचाओ कृष्णमुरारी उनका बेलन देख कांपती छड़ी हमारी कैसे जीत सकेंगे उनसे करके झगड़ा अपनी चिमटी से उनका चिमटा है तगड़ा।
मंत्री, संत्री, विधायक सभी शब्द पुल्लिंग तो भारत सरकार फिर क्यों है स्त्रीलिंग? क्यों है स्त्रीलिंग, समझ में बात ना आती नब्बे प्रतिशत मर्द, किन्तु संसद कहलाती काका बस में चढे हो गए नर से नारी कंडक्टर ने कहा आ गयी एक सवारी।
उसी समय कहने लगे शेर सिंह दीवान तोता – तोती की भला कैसे हो पहचान कैसे हो पहचान, प्रश्न ये भी सुलझा लो हमने कहा कि उसके आगे दाना डालो असली निर्णय दाना चुगने से ही होता चुगती हो तो तोती, चुगता हो तो तोता।
- काका हाथरसी |