रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1835 को काशी के पुण्य व पवित्र क्षेत्र असीघाट, वाराणसी में हुआ था। इनके पिता का नाम 'मोरोपंत तांबे' और माता का नाम 'भागीरथी बाई' था। इनका बचपन का नाम 'मणिकर्णिका' रखा गया परन्तु प्यार से मणिकर्णिका को 'मनु' पुकारा जाता था। मनु की अवस्था अभी चार-पाँच वर्ष ही थी कि उसकी माँ का देहान्त हो गया। पिता मोरोपंत तांबे एक साधारण ब्राह्मण और अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के सेवक थे।
माता भागीरथी बाई सुशील, चतुर और रूपवती महिला थीं। अपनी माँ की मृत्यु हो जाने पर वह पिता के साथ बिठूर आ गई थीं। यहीं पर उन्होंने मल्लविद्या, घुड़सवारी और शस्त्रविद्याएँ सीखीं। चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए उनके पिता मोरोपंत मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले जाते थे जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया था। बाजीराव मनु को प्यार से 'छबीली' बुलाते थे।
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सुभद्राकुमारी चौहान की 'झाँसी की रानी' कविता से कौन परिचित न होगा! किन्तु क्या आपने श्यामनारायण प्रसाद की 'झाँसी की रानी कविता भी पढ़ी है?'
झाँसी की रानी
लेकर स्वतन्त्रता के ध्वज को निर्भय फहरानेवाली थी । रणचण्डी के क्रोधानल-सम बनकर लहरानेवाली थी ॥
वह राज-योग की भस्म लगा नित अलख जगानेवाली थी । रणभेरी के रस में स्वर भर वह वीर बनानेवाली थी ॥
"तुम जगो वीर बुन्देलखण्ड' यह मन्त्र फूंकनेवाली थी । निज मातृ-भूमि के अर्चन में वह नहीं चूकनेवाली थी ॥
निद्रित झाँसी के कण-कण में नव शक्ति जगानेवाली थी । इस वीर - भूमि की पूजा में सर्वस्त्र चढ़ानेवाली थी ॥
वह महामृत्यु बनकर अरि के सिर पर मँडरानेवाली थी । जीवन पी-पीकर अरि-कुल को हर-लोक पठाने वाली थी ॥
- श्यामनारायण प्रसाद
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