वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 
जगन्नाथ प्रसाद चौबे वनमाली

जगन्नाथ प्रसाद चौबे 'वनमाली' का जन्म 1 अगस्त 1912 को आगरा में हुआ। उन्होंने अपना पूरा जीवन मध्यप्रदेश में गुजारा।  40 से 60 के दशक के बीच वनमाली हिंदी के कथा जगत के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे हैं। 1934 ए में उनकी पहली कहानी ज़िल्द साज कलकत्ता से निकलने वाली विश्व मित्र मासिक में छपी और उसके बाद लगभग 25 वर्षों तक वे प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं जैसे सरस्वती कोमा कहानी को माँ विश्व मित्र को माँ विशाल भारत को मार लोकमित्र को माँ भारती को माँ माया कोमा माधुरी इत्यादि में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे। अनुभूति की तीव्रता कहानी में नाटकीय प्रभाव सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक समझ और विश्लेषण की क्षमता के कारण उनकी कहानियों को व्यापक पाठक वर्ग और आलोचकों दोनों से ही सराहना प्राप्त हुई।

आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने अपने श्रेष्ठ कहानियों के संकलन में वनमाली की कहानी ‘आदमी और कुत्ता’ को स्थान दिया था। आपकी कहानियाँ 20 वर्षों तक मध्यप्रदेश के अनेक विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में पढ़ाई जाती रही है। आपने लगभग 100 से अधिक कहानियाँ, व्यंग्य लेख एवं निबंध लिखें। कथा साहित्य के अलावा आपके व्यंग्य व निबंध भी खासे चर्चित रहे हैं। आकाशवाणी इंदौर से आपकी कहानियाँ नियमित रूप से प्रसारित होती रही है।

आपका पहला कथा संग्रह जिल्दसाज़ आपके निधन के पश्चात 1983 में तथा दूसरा संग्रह 1995 में प्रकाशित हुआ। वर्ष 2008 में वनमाली समग्र का पहला खंड भी प्रकाशित हुआ है। उनके समकालीन शिक्षकों और छात्रों के संस्मरणों का दूसरा खंड 2011 में प्रकाशित हुआ है।

कथा साहित्य के अतिरिक्त वनमाली का शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा है। वे अविभाजित मध्यप्रदेश के अग्रगण्य शिक्षाविदों में से एक थे। अंग्रेजी साहित्य में एम.ए करने के बाद गांधीजी के आह्वान पर कई वर्षों तक प्रशिक्षण के काम में लगे रहे। फिर शिक्षक, प्रधानाध्यापक एवं उप संचालक के रूप में उन्होंने बिलासपुर खंडवा और भोपाल में कार्य किया और इस बीच अपनी पुस्तकों के माध्यम से शालाओं और शिक्षण विधियों में नवाचार और राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान परिषद की समिति के सदस्य के रूप में शिक्षा जगत में उन्होंने महत्वपूर्ण स्थान अर्जित किया। 

सम्मान : 1962 में भारत के राष्ट्रपति डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हाथों उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से विभूषित किया गया। 

उनके सैकड़ों छात्रों सहयोगी शिक्षक आज भी प्यार और सम्मान से उन्हें याद करते हैं और अपने जीवन निर्माण में उनके योगदान को सहेजकर रखे हुए हैं।

निधन : 30 अप्रैल 1976 को भोपाल में मस्तिष्क की नस फट जाने से उनका निधन हो गया।

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जनता की सरकार

एक तिनका सड़क के किनारे पड़ा हुआ दो आदमियों की बातचीत सुन रहा था।

उनमें से एक तो उसका रोज़ का साथी जूते गाँठने वाला एक मोची था और दूसरा राहगीर, जो अपने फटे जूते निकालकर मोची से पूछ रहा था—'क्यों, इनकी मरम्मत कर दोगे? क्या लोगे?’ 
मोची ने कहा—‘छह आने लूँगा, बाबू साहब।

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जिल्दसाज़

वह अधेड़ जिल्दसाज़ सबेरे से शाम तक और अँधेरा होने पर दिए की रोशनी में बड़ी रात तक, अपनी छोटी-सी दुकान में अकेला एक फुट लंबी चटाई पर बैठा किताबों की जिल्दें बाँधा करता। उसकी मोटी व भद्दी अँगुलियाँ बड़ी उतावली से अनवरत रंग-बिरंगे कागजों के पन्नों में उलझती रहतीं और उसकी धुंधली आँखें नीचे को झुकी काम में व्यस्त रहतीं।

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अभिसारिका | गद्यगीत

प्रतिदिन संझा लाली से झोली भर अभिसार के लिए अपना श्रृंगार करती है।
तारे आकर गीत गाने लगते हैं।

आँखों की काली रेखा को पारकर मद का संगीत सारे जगत में बहकर फैल जाता है।
पैरों के पायल मीठी गत में बजकर एक रसना की सृष्टि करते हैं।

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आदमी और कुत्ता

मैं आपके सामने अपने एक रेल के सफर का बयान पेश कर रहा हूँ। यह बयान इसीलिए है कि सफर में मेरे साथ जो घटना घटी उसका कभी आप अपने जीवन में सामना करें तो आप अपनी किंकर्तव्यविमूढ़ता झिटककर अपने भीतर बैठे आदमी के साथ उचित न्याय कर सकें।

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