भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
 
भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया

डॉ० भावना कुँअर का जन्म 2 फ़रवरी को मुज़फ्फ़रनगर में हुआ था। आप सिडनी (ऑस्ट्रेलिया ) की निवासी हैं। 

आप हिंदी व संस्कृत में स्नातकोत्तर हैं।  आपने बी० एड० व पी-एच०डी० ( हिंदी) की है व इसके अतिरिक्त तीन विषयों में डिप्लोमा किया हुआ है। 

शोध-विषय : 'साठोत्तरी हिन्दी गज़लों में विद्रोह के स्वर व उसके विविध आयाम'।

प्रकाशित पुस्तकें : तारों की चूनर, धूप के खरगोश (हाइकु संग्रह),जाग उठी चुभन (सेदोका-संग्रह), परिन्दे कब लौटे (चोका संग्रह), जरा रोशनी मैं लाऊँ (मुक्त छन्द),साठोत्तरी हिन्दी गज़ल में विद्रोह के स्वर (पी-एच०डी० का शोध प्रबन्ध), अक्षर सरिता, शब्द सरिता, स्वर सरिता, गीत सरिता (प्राथमिक कक्षाओं के लिए हिन्दी भाषा-शिक्षण की शृंखला), भाषा मंजूषा में कक्षा 7 के पाठ्यक्रम में एक यात्रा-संस्मरण।

संपादन: चन्दनमन (हाइकु-संग्रह), भाव कलश (ताँका संग्रह), गीत सरिता (बालगीतों का संग्रह- तीन भाग), यादो के पाखी (हाइकु संग्रह), अलसाई चाँदनी (सेदोका संग्रह), उजास साथ रखना (चोका-संग्रह), डॉ०सुधा गुप्ता के हाइकु में प्रकृति (अनुशीलनग्रन्थ), हाइकु काव्यःशिल्प एवं अनुभूति (एक बहु आयामी अध्ययन) 'गीले आखर '(चोका संग्रह)।

फिल्म : "One Less God" में संवादों का अनुवाद।

अन्य संग्रहों में प्रकाशन: कुछ ऐसा हो, सच बोलते शब्द, सदी के प्रथम दशक का हिन्दी हाइकु काव्य, आधी आबादी का आकाश, हाइकुव्योम-संग्रहों में हाइकु,कविता अनवरत-3 (कविताएँ), दोहाकोश (490 दोहाकारों का 488 पृष्ठ का कोश), साहित्य गुंजन, संगिनी उत्तराखंड मिरर,शब्द प्रवाह,चौकसी, माही संदेश, गर्भनाल,कलासन दिनकर, दि मॉरल, गोरखा संदेश, शब्द प्रवाह, रचनाकार, राष्ट्र समर्पण, ऑस्ट्रेलिया सिडनी से "दर्पण रेडियो " पर इन्टरव्यू।

अन्य प्रकाशन : उदन्ती,वीणा, वस्त्र-परिधान, अविराम, अभिनव इमरोज,सादर इण्डिया,लोक गंगा, हरिगन्धा, आरोह-अवरोह, हिन्दी चेतना, संकल्प,सरस्वती सुमन, हाइफन, हिन्दी गौरव,(सिडनी) अप्रतिम, हाइकु लोक तारिका, नेवाः हाइकु (नेपाली) विज्ञापन की दुनिया, हिन्दी टाइम्स (कनाडा) हाइकु दर्पण, समाज कल्याण पाठक मंच बुलेटिन,ई-कल्पना पत्रिका तथा अनुभूति, अभिव्यक्ति, लघुकथा डॉट कॉम, स्वर्गविभा, साहित्य कुंज,लेखनी डॉट नेट, हिन्दी नेस्ट, कविताकोश, आखर कलश, समय, रचनाकार, सृजन गाथा, कर्मभूमि,हिन्दी-पुष्प (साउथ एशिया टाइम्स) द सन्डे इन्डियन, दिल्ली इंटरनेशनल फिल्मफेस्टेवल,(नेटपत्रिकाएँ), "हम लोग"
गृहस्वामिनी आदि में नियमित प्रकाशन।

सम्मान : "हाइकु रत्न सम्मान" (2011) "काविता कोष सम्मान, हिन्दुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान (2018), हिन्दी रत्न सम्मान"(2019) ऑस्ट्रेलिया (सिड़नी), अमेरिकन कॉलेज ब्रिसबेन "ईप्सा एवार्ड" (2019) भोपाल में "टैगोर इंटरनेशनल लिटरेचर एंड आर्टस फेस्टेवल" में प्रवासी साहित्कार
सम्मान (2019)।

पुरस्कार : विश्व हिन्दी संस्थान की अनतरराष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त। 

स्वनिर्मित जालघर (वेबसाइट) पर नवीन-रचनाओं का नियमित प्रकाशन।

स्वनिर्मित जालघर (वेबसाइट) पर कला का प्रकाशन

सदस्य : संपादक समिति सिडनी से प्रकाशित "हिन्दी गौरव" मासिक पत्रिका।
संपादक कैनेडा से प्रकाशित -"हिन्दी चेतना" त्रैमासिक पत्रिका (भूतपूर्व)।

संप्रति : स्वतन्त्र लेखन और सिडनी में सेवारत।
अभिरुचि : साहित्य लेखन, अध्ययन,चित्रकला एवं देश-विदेश की यात्रा करना।

संपर्क : bhawnak2002@gmail.com

Author's Collection

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सूनापन रातों का | ग़ज़ल

सूनापन रातों का, और वो कसक पुरानी देता है
टूटे सपने,बिखरे आँसू,कई निशानी देता है

दिल के पन्ने इक-इक करके खुद-ब-खुद खुल जाते हैं
हर पन्ने पर लिखकर फिर वो,नई कहानी देता है

उसके आने से ही दिल में,मौसम कई बदलते हैं
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फिर नये मौसम की | ग़ज़ल

फिर नये मौसम की हम बातें करें
साथ खुशियों, ग़म की हम बातें करें

जगमगाते थे दिए भी साथ में
फिर भला क्यूँ, तम की हम बातें करें

जो दिया, उसने, खुशी से लें उसे
फिर ना ज़्यादा, कम की हम बातें करें

जो खुशी में भी छलक जाएँ कभी
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झरे हों फूल गर पहले | ग़ज़ल

झरे हों फूल गर पहले, तो फिर से झर नहीं सकते
मुहब्बत डालियों से फिर, कभी वो कर नहीं सकते

कड़ी हो धूप सर पर तो, परिंदे हाँफ जाते हैं
तपी धरती पे भी वो पाँव, अपने धर नहीं सकते

भरा हो आँसुओं से गर, कहीं भी आग का दरिया
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बीता मेरे साथ जो अब तक | ग़ज़ल

बीता मेरे साथ जो अब तक, वो बतलाने आई हूँ
जीवन के इस उलझेपन को मैं सुलझाने आई हूँ

पाया जिससे जैसा भी था, मैंने अपने जीवन में
प्यार का बनकर मैं सौदागर, वो लौटाने आई हूँ

सागर मुझसे पूछ रहा है, नाव मेरी क्यूँ डोल रही
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किसी के आँसुओं पर | ग़ज़ल

किसी के आँसुओं पर, ख़्वाब का घर बन नहीं सकता
भरी बरसात में फिर, शामियाना तन नहीं सकता

दुआओं का अगर हो हाथ सर पर तो भला डर क्या
वो जो खारा समंदर है भला क्यों छन नहीं सकता

भले हालात ने उसको, बना डाला हो आतंकी
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लम्हा इक छोटा सा फिर | ग़ज़ल

लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराजाँ दे गया
दिल गया धड़कन गयी और जाने क्या-क्या ले गया

वो जो चिंगारी दबी थी प्यार के उन्माद की
होठ पर आई तो दिल पे कोई दस्तक दे गया

उम्र पहले प्यार की हर पल ही घटती जा रही
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कभी तुम दूर जाते हो | ग़ज़ल

कभी तुम दूर जाते हो, कभी तुम पास आते हो
कभी हमको हँसाते हो, कभी हमको रुलाते हो

हमारे दिल के हर कोने में, रहते हो अगर तुम ही
उसे ही तोड़ते हो क्यूँ, जहाँ तुम घर बनाते हो।

बड़ी ऊँचाई पे मंज़िल थी पहुँची मुश्किलों से मैं
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यूँ जीना आसान नहीं है | ग़ज़ल

यूँ जीना आसान नहीं है,इस दुनिया के इस मेले में
ईश के दर पे रख दे सर को, क्यूँ तू पड़े झमेले में

नाखूनों की बाड़ लगी है,उगते जहाँ विरोध बहुत
मजबूती से कलम पकड़ ले, खो मत जाना रेले में

खुद को ना भगवान समझ तू , माटी का इक पुतला है
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किसी की आँख में आँसू | ग़ज़ल

किसी की आँख में आँसू, किसी की आँख में सपने
पराए हैं कहीं घर के, कहीं अनजान भी अपने

बिछाई राह में तुमने, भले शीतल हवाएँ हों
पड़े हैं अनगिनत छाले, लगें हैं पाँव भी थकने।

पड़ा जब दुःख भरा साया, कोई भी पास ना आया
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अब अँधेरों से लिपटकर | ग़ज़ल

अब अँधेरों से लिपटकर यूँ ना रोया कीजिए
हो घड़ी भर के लिए पर, कुछ तो सोया कीजिए

बन्द रहने दो ये आँसू,अपने दिल की सीप में
कीमती मोती हैं ये, इनको ना खोया कीजिए

यूँ सफर ये जिंदगी का,है बहुत मुश्किल मगर
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