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सूनापन रातों का | ग़ज़ल
सूनापन रातों का, और वो कसक पुरानी देता है
टूटे सपने,बिखरे आँसू,कई निशानी देता है
दिल के पन्ने इक-इक करके खुद-ब-खुद खुल जाते हैं
हर पन्ने पर लिखकर फिर वो,नई कहानी देता है
उसके आने से ही दिल में,मौसम कई बदलते हैं
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फिर नये मौसम की | ग़ज़ल
फिर नये मौसम की हम बातें करें
साथ खुशियों, ग़म की हम बातें करें
जगमगाते थे दिए भी साथ में
फिर भला क्यूँ, तम की हम बातें करें
जो दिया, उसने, खुशी से लें उसे
फिर ना ज़्यादा, कम की हम बातें करें
जो खुशी में भी छलक जाएँ कभी
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झरे हों फूल गर पहले | ग़ज़ल
झरे हों फूल गर पहले, तो फिर से झर नहीं सकते
मुहब्बत डालियों से फिर, कभी वो कर नहीं सकते
कड़ी हो धूप सर पर तो, परिंदे हाँफ जाते हैं
तपी धरती पे भी वो पाँव, अपने धर नहीं सकते
भरा हो आँसुओं से गर, कहीं भी आग का दरिया
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बीता मेरे साथ जो अब तक | ग़ज़ल
बीता मेरे साथ जो अब तक, वो बतलाने आई हूँ
जीवन के इस उलझेपन को मैं सुलझाने आई हूँ
पाया जिससे जैसा भी था, मैंने अपने जीवन में
प्यार का बनकर मैं सौदागर, वो लौटाने आई हूँ
सागर मुझसे पूछ रहा है, नाव मेरी क्यूँ डोल रही
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किसी के आँसुओं पर | ग़ज़ल
किसी के आँसुओं पर, ख़्वाब का घर बन नहीं सकता
भरी बरसात में फिर, शामियाना तन नहीं सकता
दुआओं का अगर हो हाथ सर पर तो भला डर क्या
वो जो खारा समंदर है भला क्यों छन नहीं सकता
भले हालात ने उसको, बना डाला हो आतंकी
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लम्हा इक छोटा सा फिर | ग़ज़ल
लम्हा इक छोटा सा फिर उम्रे दराजाँ दे गया
दिल गया धड़कन गयी और जाने क्या-क्या ले गया
वो जो चिंगारी दबी थी प्यार के उन्माद की
होठ पर आई तो दिल पे कोई दस्तक दे गया
उम्र पहले प्यार की हर पल ही घटती जा रही
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कभी तुम दूर जाते हो | ग़ज़ल
कभी तुम दूर जाते हो, कभी तुम पास आते हो
कभी हमको हँसाते हो, कभी हमको रुलाते हो
हमारे दिल के हर कोने में, रहते हो अगर तुम ही
उसे ही तोड़ते हो क्यूँ, जहाँ तुम घर बनाते हो।
बड़ी ऊँचाई पे मंज़िल थी पहुँची मुश्किलों से मैं
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यूँ जीना आसान नहीं है | ग़ज़ल
यूँ जीना आसान नहीं है,इस दुनिया के इस मेले में
ईश के दर पे रख दे सर को, क्यूँ तू पड़े झमेले में
नाखूनों की बाड़ लगी है,उगते जहाँ विरोध बहुत
मजबूती से कलम पकड़ ले, खो मत जाना रेले में
खुद को ना भगवान समझ तू , माटी का इक पुतला है
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किसी की आँख में आँसू | ग़ज़ल
किसी की आँख में आँसू, किसी की आँख में सपने
पराए हैं कहीं घर के, कहीं अनजान भी अपने
बिछाई राह में तुमने, भले शीतल हवाएँ हों
पड़े हैं अनगिनत छाले, लगें हैं पाँव भी थकने।
पड़ा जब दुःख भरा साया, कोई भी पास ना आया
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अब अँधेरों से लिपटकर | ग़ज़ल
अब अँधेरों से लिपटकर यूँ ना रोया कीजिए
हो घड़ी भर के लिए पर, कुछ तो सोया कीजिए
बन्द रहने दो ये आँसू,अपने दिल की सीप में
कीमती मोती हैं ये, इनको ना खोया कीजिए
यूँ सफर ये जिंदगी का,है बहुत मुश्किल मगर
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