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लोग क्या से क्या न जाने हो गए | ग़ज़ल
लोग क्या से क्या न जाने हो गए
आजकल अपने बेगाने हो गए
बेसबब ही रहगुज़र में छोड़ना
दोस्ती के आज माने हो गए
आदमी टुकडों में इतने बँट चुका
सोचिए कितने घराने हो गए
वक्त ने की किसकदर तब्दीलियाँ
जो हकीकत थे फसाने हो गए
प्यार-सच्चाई-शराफत कुछ नहीं
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बिला वजह आँखों के कोर भिगोना क्या | ग़ज़ल
बिला वजह आँखों के कोर भिगोना क्या
अपनी नाकामी का रोना रोना क्या
बेहतर है कि समझें नब्ज़ ज़माने की
वक़्त गया फिर पछताने से होना क्या
भाईचारा -प्यार मुहब्बत नहीं अगर
तब रिश्ते नातों को लेकर ढोना क्या
जिसने जान लिया की दुनिया फ़ानी है
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नहीं कुछ भी बताना चाहता है | ग़ज़ल
नहीं कुछ भी बताना चाहता है
भला वह क्या छुपाना चाहता है
तिज़ारत की है जिसने आँसुओं की
वही ख़ुद मुस्कुराना चाहता है
किया है ख़ाक़ जिसने चमन को वो
मुक़म्मल आशियाना चाहता है
हथेली पर सजाकर एक क़तरा
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परिंदे की बेज़ुबानी
बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है!
कड़कती धूप हो या तेज़ बारिश का ज़माना हो,
क़हर तूफ़ान का हो या बिजलियों का फ़साना हो !
मगर वह बेबसी का ख़ौफ़ मंज़र देखने वाला,
शिकायत क्या करे जिसका दरख़्तों पर ठिकाना हो!
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गर धरती पर इतना प्यारा
गर धरती पर इतना प्यारा,
बच्चों का संसार न होता !
बच्चे अगर नहीं होते तो,
घर-घर में वीरानी होती ।
दिल सबका छू लेनेवाली ,
नहीं तोतली बानी होती ।
गली-गली में खेल-खिलौनों,
का, भी कारोबार न होता ।।
गर धरती पर इतना प्यारा,
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नहीं है आदमी की अब | हज़ल
नहीं है आदमी की अब कोई पहचान दिल्ली में
मिली है धूल में कितनों की ऊँची शान दिल्ली में
तलाशो मत मियाँ रिश्ते, बहुत बेदर्द हैं गलियाँ
बड़ी मुश्किल से मिलते है सही इंसान दिल्ली में
शराफ़त से किसी भी भीड़ में होकर खड़े देखो
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हौसले मिटते नहीं
हौसले मिटते नहीं अरमाँ बिखर जाने के बाद
मंजिलें मिलती है कब तूफां से डर जाने के बाद
कौन समझेगा कभी उस तैरने वाले का ग़म
डूब जाये जो समंदर पार कर जाने के बाद
आग से जो खेलते हैं वे समझते है कहाँ
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कौन यहाँ खुशहाल बिरादर
कौन यहाँ खुशहाल बिरादर
बद-से-बदतर हाल बिरादर
क़दम-क़दम पर काँटे बिखरे
रस्ते-रस्ते ज़ाल बिरादर
किसकी कौन यहाँ पर सुनता
भटको सालों-साल बिरादर
मिल जाएँगे रोज़ दरिंदे
ओढ़े नकली ख़ाल बिरादर
समय नहीं है नेकी करके
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उलझे धागों को सुलझाना
उलझे धागों को सुलझाना मुश्किल है
नफरतवाली आग बुझाना मुश्किल है
जिनकी बुनियादें खुदग़र्ज़ी पर होंगी
ऐसे रिश्तों का चल पाना मुश्किल है
बेहतर है कि खुद को ही तब्दील करें
सारी दुनिया को समझाना मुश्किल है
जिनके दिल में कद्र नहीं इनसानों की
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माँ की ममता जग से न्यारी !
माँ की ममता जग से न्यारी !
अगर कभी मैं रूठ गया तो,
माँ ने बहुत स्नेह से सींचा ।
कितनी बड़ी शरारत पर भी,
जिसने कान कभी ना खीँचा ।
उसके मधुर स्नेह से महकी,
मेरे जीवन की फुलवारी ।
माँ की ममता जग से न्यारी !
बिस्तर-बिना सदा जो सोई,
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