Author's Collection
1 | 2 [Next] [Last]Total Number Of Record :13
बढ़े चलो! बढ़े चलो!
न हाथ एक शस्त्र हो
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न, नीर, वस्त्र हो,
हटो नहीं,
डटो वहीं,
बढ़े चलो!
बढ़े चलो!
रहे समक्ष हिमशिखर,
तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाए तन बिखर,
रुको नहीं,
झुको नहीं
बढ़े चलो!
बढ़े चलो!
घटा घिरी अटूट हो,
...
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्ही चींटीं जब दाना ले कर चढ़ती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगॊं मे साहस भरता है
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अखरता है
...
नववर्ष
स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
आओ, नूतन-निर्माण लिये,
इस महा जागरण के युग में
जाग्रत जीवन अभिमान लिये;
दीनों दुखियों का त्राण लिये
मानवता का कल्याण लिये,
स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष!
तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।
संसार क्षितिज पर महाक्रान्ति
...
खड़ा हिमालय बता रहा है
खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आंधी पानी में।
खड़े रहो तुम अविचल हो कर
सब संकट तूफानी में।
डिगो ना अपने प्राण से, तो तुम
सब कुछ पा सकते हो प्यारे,
तुम भी ऊँचे उठ सकते हो,
छू सकते हो नभ के तारे।
अचल रहा जो अपने पथ पर
...
मुक्ता
ज़ंजीरों से चले बाँधने
आज़ादी की चाह।
घी से आग बुझाने की
सोची है सीधी राह!
हाथ-पाँव जकड़ो,जो चाहो
है अधिकार तुम्हारा।
ज़ंजीरों से क़ैद नहीं
हो सकता ह्रदय हमारा!
-सोहनलाल द्विवेदी
...
मंदिर-दीप
मैं मंदिर का दीप तुम्हारा।
जैसे चाहो, इसे जलाओ,
जैसे चाहो, इसे बुझायो,
इसमें क्या अधिकार हमारा?
मैं मंदिर का दीप तुम्हारा।
जस करेगा, ज्योति करेगा,
जीवन-पथ का तिमिर हरेगा,
होगा पथ का एक सहारा!
...
अगर कहीं मैं पैसा होता ?
पढ़े-लिखों से रखता नाता,
मैं मूर्खों के पास न जाता,
दुनिया के सब संकट खोता !
अगर कहीं मैं पैसा होता ?
जो करते दिन रात परिश्रम,
उनके पास नहीं होता कम,
बहता रहती सुख का सोता !
अगर कहीं मैं पैसा होता ?
...
तुलसीदास | सोहनलाल द्विवेदी की कविता
अकबर का है कहाँ आज मरकत सिंहासन?
भौम राज्य वह, उच्च भवन, चार, वंदीजन;
धूलि धूसरित ढूह खड़े हैं बनकर रजकण,
बुझा विभव वैभव प्रदीप, कैसा परिवर्तन?
महाकाल का वक्ष चीरकर, किंतु, निरंतर,
सत्य सदृश तुम अचल खड़े हो अवनीतल पर;
...
युगावतार गांधी
चल पड़े जिधर दो डग, मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर;
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर,
जिसके शिर पर निज हाथ धरा
उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया
झुक गए उसी पर कोटि माथ;
हे कोटि चरण, हे कोटि बाहु
...
अकबर और तुलसीदास
अकबर और तुलसीदास,
दोनों ही प्रकट हुए एक समय,
एक देश, कहता है इतिहास;
'अकबर महान'
गूँजता है आज भी कीर्ति-गान,
वैभव प्रासाद बड़े
जो थे सब हुए खड़े
पृथ्वी में आज गड़े!
अकबर का नाम ही है शेष सुन रहे कान!
...
Total Number Of Record :13