Warning: session_start(): open(/tmp/sess_278d346e8d2f7c74e46c29c3ab226490, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_details.php on line 3

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_details.php on line 3
 गले मुझको लगा लो - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ग़ज़ल | Ghazal by Bharatendu Harishchandra
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।

गले मुझको लगा लो | ग़ज़ल

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय | Bharatendu Harishchandra Biography Hindi

गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ए यार होली में।

नहीं यह है गुलाले सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक ही है उमड़ी आहें आतिशबार होली में।

गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में।

है रंगत जाफ़रानी रुख़ अबीरी कुमकुम कुछ है,
बने हो ख़ुद ही होली तुम ए दिलदार होली में।

रसा गर जामे-मय ग़ैरों को देते हो तो मुझको भी
नशीली आँख दिखाकर करो सरशार होली में।

-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश