जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

‘फीजी हिंदी’ साहित्य एवं साहित्यकार: एक परिदृश्य

 (विविध) 
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रचनाकार:

 सुभाषिनी लता कुमार | फीजी

‘फीजी हिंदी’ फीजी में बसे भारतीयों द्वारा विकसित हिंदी की नई भाषिक शैली है जो अवधी, भोजपुरी, फीजियन, अंग्रेजी आदि भाषाओं के मिश्रण से बनी है। फीजी के प्रवासी भारतीय मानक हिंदी की तुलना में, फीजी हिंदी भाषा में अपनी भाव-व्यंजनाओं को अच्छी तरह से अभिव्यक्त कर पाते हैं। इसीलिए भारतवंशी साहित्यकारों ने अंग्रेजी भाषा के मोह को छोड़कर हिंदी में साहित्यिक कृतियाँ लिखनी प्रारंभ कीं। मातृभाषा के इसी प्रेम के फलस्वरूप फीजी हिंदी की साहित्यिक कृतियों का सृजन भी हुआ है, जिनमें रेमंड पिल्लई का ‘अधूरा सपना’ और सुब्रमनी का ‘डउका पुराण’ प्रमुख हैं।

वस्तुतः फीजी हिंदी भाषा के साथ अक्सर यह संदेह रहा है कि वह एक अपूर्ण टूटी-फूटी, व्याकरण हीन भाषा है, और इसका प्रयोग सिर्फ बोल-चाल के लिए ही उपयुक्त है, किंतु प्रो. सुब्रमनी की बृहत औपन्यासिक कृति ‘डउका पुरान’ ने इस रूढ़ि-बद्ध धारणा को निरर्थक साबित कर दिया।

फीजी हिंदी में लिखित कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथों की व्याख्या इस प्रकार हैः-

फीजी हिंदी – रॉडनी मोग

फीजी हिंदी पर कई विदेशी विद्वानों ने महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे हैं जिसमें रोडने मोग का ग्रंथ ‘फीजी हिंदी’ एक महत्वपूर्ण परिचयात्मक ग्रंथ है। ‘फीजी हिंदी’ अमेरिकी भाषावैज्ञानिक डॉ.रॉडनी मोग द्वारा लिखित पुस्तक है। इन्होंने फीजी में कई वर्ष रहकर, फीजी की भाषा और संस्कृति का अध्ययन कर, भाषावैज्ञानिक दृष्टि से इस ग्रंथ को लिखा है। प्रस्तुत पुस्तक फीजी हिंदी के भाषिक स्वरूप पर आधारित है। यह पुस्तक छह अध्यायों में विभक्त है जिसे लेखक इकाई की संज्ञा देता है। फीजी हिंदी भाषा के व्याकरणिक विवेचन के अतिरिक्त इसमें पाठकों के लिए व्याकरणिक अभ्यास भी दिए गए हैं।

से इट इन फीजी हिंदी (Say it in Fiji Hindi) – जे.एफ. सीगल

सन् 1977 में जे.एफ. सीगल ने ‘से इट इन फीजी हिंदी’ नामक वार्तालाप पर आधारित पुस्तिका लिखी। इस 77 पृष्ठों की लघु वार्तालापी पुस्तिका का प्रकाशन पसिफिक पब्लिकेशंस, सिडनी में हुआ था। पुस्तिका के मुख्य पृष्ठ पर लिखा हुआ है कि यह फीजी की आधी से अधिक जनसंख्या की दैनिक व्यवहार के लिए उपयोगी पुस्तक है।

डउका पुरान –प्रो. सुब्रमनी

प्रोफेसर सुब्रमनी फीजी के प्रमुख गद्य लेखकों, निबंधकारों और आलोचकों में से एक हैं। एक सृजनात्मक लेखक समाज में मूल्यों और बौद्धिकता को स्थापित करता है। जिस प्रकार से तुलसीदास, कबीरदास, रहीम, महावीर प्रसाद द्विवेदी, मुंशी प्रेमचंद, आदि साहित्यकारों ने तटस्थ होकर समाज के सत्य को पाठकों के समक्ष रखा, उसी भांति प्रो. सुब्रमनी अपने साहित्य के माध्यम से फीजी के निम्न वर्गीय समाज की संवेदनाओं और प्रवासी जीवन के संघर्षों को पाठकों के समक्ष यथार्थ रूप में प्रस्तुत करते हैं।‘डउका पुरान’ फीजी हिन्दी साहित्य की एक ऐतिहासिक तथा महत्वपूर्ण उपलब्धि है जिसका प्रकाशन स्टार पब्लिकेशन, नई दिल्ली द्वारा सन् 2001 में हुआ। ‘डउका पुरान’ की भाषा ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। उपन्यास के नायक फीजीलाल के माध्यम से प्रोफेसर सुब्रमनी ने फीजी के भारतियों की भाषा, रीति-रिवाज़, सोच-विचार, आकांशाएं, उत्थान एवं पतन, मनोविनोद, खेती-बारी, परंपरा गत विश्वास तथा उनके भीतर अंकुर रूप में फूट रहे प्रवृतियों के अध्ययन द्वारा राजनीतिक, पारिवारिक विघटन, अंधविश्वास, जमीन लीस आदि समस्याओं का बड़ा ही सटीक चित्रण किया है।

अधूरा सपना- रेमंड पिल्लई

रेमंड पिल्लई फीजी के प्रसिद्ध और प्रमुख लेखकों में से एक हैं। उन्हें न केवल फीजी में ही बल्कि दक्षिण प्रशांत के साहित्यिक क्षेत्र में भी अग्रणी कलाकार माना जाता है। सन् 1980 में उन्होंने अपना पहला अंग्रेजी लघु कहानी संग्रह ‘द सेलिब्रेशन’ प्रकाशित की। उनकी कृति ‘अधूरा सपना’, फीजी हिंदी में लिखी प्रसिद्ध साहित्यिक कृति है। ‘अधूरा सपना’ पर 2007 में विमल रेड्डी के निर्देशन में हिंदी फिल्म बनी और रेमंड पिल्लई ने पहली फीजी हिंदी फिल्म ‘अधूरा सपना’ के लिए पटकथा लिखकर अपना नाम फीजी हिंदी साहित्य के इतिहास में दर्ज करा लिया ।

कोई किस्सा बताव- प्रवीन चंद्रा

सन् 2018 में फीजी हिंदी की प्रथम कहानी संग्रह ‘कोई किस्सा बताव’ का संपादन श्री प्रवीण चंद्रा द्वारा किया गया । इस कहानी संग्रह में फीजी के वरिष्ठ साहित्यकारों; प्रो. सुब्रमनी, प्रो. सतेन्द्र नंदन, डॉ. ब्रिज लाल, डॉ. रामलखन प्रसाद, श्रीमान खेमेंद्रा कुमार , श्रीमती सरिता चंद, श्रीमान नरेश चंद, श्रीमती सुभाशनी कुमार आदि लेखकों ने फीजी हिंदी भाषा में अपनी कृतियों को संकलित किया है। ‘कोई किस्सा बताव’ कहानी संग्रह एक ऐसी कलाकृति है जिसमें फीजी के प्रवासी भारतीयों की जीवन शैली को कहानी की विधा में बाँधा गया है।

फीजी माँ- प्रो. सुब्रमनी

प्रो. सुब्रमनी फीजी हिंदी को सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए अधिक समर्थ समझते हैं इसीलिए उन्होंने अपना बृहत उपन्यास फीजी हिदी में लिखकर विश्वव्यापी ख्याति अर्जित की। उनका दूसरा उपन्यास ‘फीजी माँ’ है। प्रो. सुब्रमनी के उपन्यास ‘फीजी माँ’ अपनी तरह की एक अलग कृति है। सन् 2019 में इसका लोकार्पण द यूनिवर्सिटी ऑफ फीजी के ‘ग्लोबल गिरमिट इंस्टिट्यूट’ ने ‘अंतरराष्ट्रीय गिरमिट कॉन्फ्रेंस’ के दौरान किया। यह पुस्तक फीजी बात अर्थात् फीजी हिंदी में लिखी गई है, जो सुल्तानपुर और फैज़ाबाद के आसपास की बोले जाने वाली अवधी का ही विस्तारित स्वरूप है। यह बृहद औपन्यासिक कृति 1026 पृष्ठों की है जिसमें प्रोफेसर सुब्रमनी ने ऐसी जानकारियां दी हैं, जो पाठक को स्तब्ध करती हैं।

फीजी हिंदी साहित्य की अधिकत्म रचनाएं आत्मकथात्मक है जिनके माध्यम से साहित्यकारों ने अपने तथा अपने पूर्वजों के गिरमिट काल की त्रासदियों, अनुभवों, संवेदनाओं, मान्यताओं, मूल्यों तथा वर्तमान जीवन शैली को लिपिबद्ध किया है।

शुभाषिनी लता

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