हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।

श्रम का वंदन | जन-गीत

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 गिरीश पंकज

जिस समाज में श्रम का वंदन, केवल वही हमारा है।
आदर हो उन सब लोगों का, जिनने जगत सँवारा है।
होते न मजदूर जगत में, हम सिरजन ना कर पाते।
भवन, सड़क, तालाब, कुऍं कैसे इनको हम गढ़ पाते।
श्रमवीरों के बलबूते ही, अपना वैभव सारा है।
जिस समाज में श्रम का वंदन,केवल वही हमारा है।

जो करते हैं मेहनत पूरी, उनको बस सम्मान मिले।
वे भी मानव हैं दुनिया के, उनको इक पहचान मिले।
उनको भी जीने का हक है, ज्यों अधिकार हमारा है।
जिस समाज में श्रम का वंदन,केवल वही हमारा है।

श्रमवीरों के बलबूते ही, यह सुंदर संसार बना।
विश्व एक उद्यान मनोहर,देखो ख़ुशबूदार बना।
एक रहें मजदूर विश्व के, हमने यही पुकारा है।
जिस समाज में श्रम का वंदन,केवल वही हमारा है.
जो सर्जक इस दुनिया के क्यूँ, उनको चना-चबेना है।
शोषक लोगों से बढ़ कर के, हमको उत्तर लेना है ।
"हर जोर-जुल्म की टक्कर में, संघर्ष हमारा नारा है,"
जिस समाज में श्रम का वंदन,केवल वही हमारा है।।

-गिरीश पंकज

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश