हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।

चेहरे से दिल की बात | ग़ज़ल

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 अंजुम रहबर

चेहरे से दिल की बात छलकती ज़रूर है,
चांदी हो चाहे बर्क चमकती ज़रूर है।

दिल तो कई दिनों से कहीं खो गया मगर,
पहलू में कोई चीज़ धड़कती ज़रूर है।

कमज़र्फ कह रहे हो मगर ये भी जान लो,
हो आँख या शराब छलकती ज़रूर है।

ये और बात है कोई महसूस कर न पाये,
हर दिल में कोई आग भडकती जरूर है।

छुपती कभी नहीं है मोहब्बत छुपाये से,
चूड़ी हो हाथ में तो खनकती ज़रूर है।

हम झुक के मिल रहे हैं तो कमजोर मत समझ,
फलदार शाख हो तो लचकती ज़रूर है।

अल्फाज़ फूल ही नहीं कांटे भी हैं मगर,
अंजुम कहे ग़ज़ल तो महकती ज़रूर है।

                           -अंजुम रहबर

 

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