7 दिसंबर | 7 December
इतिहास के गर्भ में प्रत्येक दिन से संबंधित अनेक कहानी, किस्से और प्रसंग छिपे हैं। आइए, जाने क्या हुआ था 7 दिसंबर को!
7 दिसंबर 1825 - भाँप से चलने वाला पहला समुद्री जहाज ‘इंटरप्राइज’ कोलकाता (कलकत्ता) पहुंचा।
7 दिसंबर 1856 - भारत में पहला संवैधानिक रूप से ‘हिंदू विधवा पुनर्विवाह’ समपन्न करवाया गया।
7 दिसम्बर 1879 - भारत के क्रांतिकारी जतीन्द्रनाथ मुखर्जी अथवा बाघा जतीन का जन्म हुआ।
7 दिसंबर 1949 - भारत का सशस्त्र सेना झंडा दिवस।
7 दिसंबर की कहानी, किस्से और प्रसंग
पहला भाँप से चलने वाला समुद्री जहाज भारत पहुंचा
7 दिसंबर 1825 को भाँप से चलने वाला पहला समुद्री जहाज ‘एस एस इंटरप्राइज’ कोलकाता (कलकत्ता) पहुंचा।
इस जहाज ने पहली इंग्लैंड-भारत यात्रा पूरी की थी। इससे पहले के समुद्री जहाज लकड़ी के बने होते थे। वे धीमी गति से चलने वाले और आकार में छोटे थे। भाप इंजन ने जहाजों के निर्माण में लोहे के उपयोग को सक्षम किया और अंततः 200 मीटर से अधिक लंबे जहाजों का निर्माण होने लगा। ये पूर्ववर्ती नौकायन जहाज से तीन से चार गुना तेज गति अपनी यात्रा तय करते थे। यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन था।
[भारत-दर्शन संकलन]
पहला संवैधानिक हिंदू विधवा पुनर्विवाह
7 दिसंबर 1856 को देश का पहला संवैधानिक और विधिवत विधवा-विवाह हुआ।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने घोर सामाजिक विरोध के बीच 10 वर्ष की आयु में बाल विधवा हो चुकी 'कालीमती' का विवाह अपने एक साथी 'श्रीचन्द्र विद्यारत्ना' से सम्पन्न करवाया। इस विवाह का जहाँ एक ओर बहुत से लोगों ने घोर विरोध किया तो दूसरी ओर इसका भरपूर स्वागत भी हुआ।
19 जुलाई 1856 को 'हिंदू विधवा पुनर्विवाह विधेयक' पारित हुआ था और 25 जुलाई से गवर्नर जनरल की स्वीकृति के बाद यह लागू हो गया था। इस विधेयक को पारित करवाने के लिए ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने बहुत परिश्रम और संघर्ष किया था।
हिंदू विधवा पुनर्विवाहविधेयक' पारित होने के पश्चात यह पहला विधवा विवाह था लेकिन पर यह पहली बार नहीं था कि किसी विधवा का पुनर्विवाह हुआ हो। इससे दो दशक पहले एक बंगाली युवा ने एक विधवा से विवाह किया था। दक्षिनारंजन मुखोपाध्याय ने बर्दवान की रानी बसंता कुमारी से विवाह किया था। बसंता कुमारी, राजा तेजचन्द्र की विधवा थी। भारत में यह विवाह शायद किसी विधवा का पहला पुनर्विवाह था और वह भी अंतर्जातीय। उस समय, मुखोपाध्याय और बसंता के रिश्ते को सामाजिक रूप से स्वीकारा नहीं गया था और उन्हें अपना शहर छोड़कर लखनऊ में जाकर बसना पड़ा था। मुखोपाध्याय समाजिक रूप से सक्षम थे और वे रईस परिवार से संबंध थे, यथा उन्होंने दूसरे स्थान पर जा बसने के बाद आराम से अपना जीवन व्यतीत किया।
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर पुनर्विवाह विधेयक के पश्चात नायक बन गए और उनका बहुत सम्मान होने लगा। सुनते हैं, शांतिपुर के साड़ी बुनकरों ने विद्यासागर के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने के लिए साड़ियों पर बंगाली में कविता बुनना शुरू कर दिया, जिसपर छपा होता था--
“बेचे थाको विद्यासागर चिरजीबी होए”
(जीते रहो विद्यासागर, चिरंजीवी हो! )
[भारत-दर्शन संकलन]
जतीन्द्रनाथ मुखर्जी (बाघा जतीन) का जीवन परिचय
बाघा जतीन का जन्म 7 दिसम्बर, 1879 को कुष्टिया में हुआ था। यह स्थान अब बांग्लादेश में है। जतीन्द्रनाथ मुखर्जी के बचपन का नाम 'जतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय' था। अल्पायु में ही इनके सिर से पिता का साया उठ गया। इनकी माता जी ने ही पूरे परिवार को संभाला। जतीन्द्रनाथ छोटी उम्र में ही स्टेनोग्राफी सीखकर नौकरी करने लगे।
कॉलेज में पढ़ते हुए, वे सिस्टर निवेदिता के साथ राहत-कार्यों में हाथ बटाने लगे। सिस्टर निवेदिता के माध्यम से आपका संपर्क स्वामी विवेकानंद से हुआ। स्वामी विवेकानन्द से मिलने पर ही जतीन को एक उद्देश्य मिला और वे अपनी मातृभूमि के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित हुए।
एक बार उनके गांव के आसपास एक बाघ का आतंक था। बाघ कहीं मवेशियों को ना मार दे, इसलिए गांव के युवाओं ने एक टोली बनाई और बाघ को खदेड़ने की सोची। वे सब जंगल में चल दिए। आखिर बाघ दिख ही गया लेकिन इतने लोगों को सामने देख बाघ ने इस टोली पर हमला कर दिया। इनमें से एक जतीन का चचेरा भाई था। उसे मुसीबत में देख जतीन ने बाघ से मुठभेड़ कर ली। वह उसके ऊपर चढ़ बैठा। संघर्ष में बाघ ने जतीन को लहूलुहान कर डाला। जतीन के पास एक खुकरी थी। उसने अपनी कमर में बंधी खुकरी (गोरखों का हथियार) निकाली और बाघ पर धड़ाधड़ वार पर वार करने शुरू कर दिए। बाघ ढेर हो गया। जतीन भी लहूलुहान था, उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया तो लेफ़्टिनेंट कर्नल डॉक्टर सर्बाधिकारी उसकी बहदुरी से बड़े प्रभावित हुए। जतीन की बहादुरी का किस्सा अखबार में प्रकाशित हुआ तो जतीन 'बाघा जतीन' के नाम से प्रसिद्ध हो गए और इसी नाम से पुकारे जाने लगे।
जतीन एक क्रांतिकारी थे। वे 'युगान्तर पार्टी' के मुख्य नेता थे। युगान्तर पार्टी बंगाल में क्रान्तिकारियों का प्रमुख संगठन थी। जतीन श्री अरबिंदो के भी सम्पर्क में भी रहे। बाद में वे रास बिहारी बोस के संपर्क में भी आए।
9 सितम्बर 1915 को पुलिस मुठभेड़ में बुरी तरह घायल हो गए और अगले दिन 10 सितम्बर 1915 वीरगति को प्राप्त हुए।
- रोहित कुमार हैप्पी [भारत-दर्शन संकलन]
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