हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। - शारदाचरण मित्र।

वर्तमान परिदृश्य में हिन्दी (विविध)

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Author: डॉ. सचिन कुमार

वर्तमान परिदृश्य में हिन्दी समूचे विश्व के आकर्षण का केन्द्र बनती जा रही है। विश्व के लगभग 140 प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में हिन्दी का पठन-पाठन होना एक शुभ संकेत है। आज बाजार में अपना पाँव पसारे कई टी0वी0 चैनलों को लगने लगा है कि हमें अगर भारत में लोकप्रियता अर्जित करनी है और पैसा कमाना है तो यह हिन्दी के बिना संभव नहीं। डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफिकल चैनल एवं बच्चों के लोकप्रिय चैनल पोगो को अन्ततः अपने प्रसारण का हिन्दी में अनुवाद प्रस्तुत करना ही पड़ा।

आज का युग सूचना-क्रान्ति का युग है, जहाँ ज्ञान-विज्ञान का निरन्तर विकास होता जा रहा है। परस्पर सम्पर्क क्षेत्र भी बढ़ता जा रहा है, अतः ऐसी स्थिति में वह भाषा सर्वप्रिय और सर्वोपयोगी मानी जा सकती है जो अन्तर्राष्ट्रीय सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। भाषा के प्रायः दो रूप माने जाते हैं - सामान्य अभिव्यक्तिपरक रूप तथा प्रगतिपरक अभिव्यक्ति रूप। जिसमें से प्रगतिपरक भाषा का सीधा सम्बन्ध ज्ञान-विज्ञान, तकनीक के क्षेत्र से रहता है और ज्यों-ज्यों विकास के चरण बढ़ते जाते हैं इस प्रकार की भाषा की उपयोगिता भी बढ़ती जाती है। यह तथ्य भी ध्यान मंे रखना आवश्यक है कि तकनीकी भाषा साहित्यिक भाषा से अलग करके नहीं देखी जा सकती। उसका तकनीकी क्षेत्र में प्रयोग उसके मूल संरचनात्मक स्वरूप को वैसा ही बनाये रखता है, मात्र उसके प्रयोगजनक प्रकार्य का स्तर, क्षेत्र बढ़ जाता है, अतः इसको विशेष भाषा भी मान लिया जाता है। उसका यह विशेषीकृत रूप ही उसे वैज्ञानिक और तकनीकी भाषा का अभिधान ग्रहण करने के योग्य बनाता है। एक सामान्य शब्द है-बाजार। इसका विशेष प्रयोग है- ‘विश्व बाजार', ‘दाल बाजार' ,'काला बाजार' आदि। इसी प्रकार ‘निजी' और ‘सार्वजनिक' शब्द भी प्रयुक्त हैं - ‘निजी क्षेत्र' ,‘सार्वजनिक क्षेत्र'।

अतः यह सर्वमान्य तथ्य है कि भूमण्डलीकरण के दौर में तब तक कोई भाषा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने को प्र्रस्थापित नहीं कर पाती है, जब तक वह भाषा अपनी प्रामाणिकता, अपनी शुद्धता एवं अपनी वैज्ञानिकता सिद्ध नहीं कर देती।

अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र - आज के दौर में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक क्षेत्र खुले हैं और खुलते चले जा रहे हैं। यहाँ उनमंे से कुछ का उल्लेख है ‘-

1. चिकित्सा और स्वास्थ्य 2. यातायात
3. व्यापार 4. शिक्षा
5. मीडिया 6. चलचित्र
7. तकनीक 8. समाचार क्षेत्र
8. विज्ञान 10. औद्योगिक तकनीक
11. आकाशवाणी 12. दूरदर्शन
13. कम्प्यूटर

आज की हिन्दी भूमण्डलीकरण के दौर में वह सामर्थ्य अर्जित कर चुकी है, जिसके आधार पर पर वह अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र मंे अपना स्थान बनाने में पूर्ण समर्थ है।। इसके दोे आधार हैं -

1. प्रयासजनित, 2. सामान्य प्रक्रिया।

प्रयासजनित:- स्वतन्त्रता प्राप्ति केे बाद जब हिन्दी को राष्ट्रभाषा माना गया, तो यह कहा गया कि इसमें उस तकनीकी क्षमता का अभाव है, जिसकी आवश्यकता आज के युग में अनिवार्य है। अतः हमारे देश मंे इस प्रकार के प्रयास हुए-

(1) सन् 1955 ई. मे श्री लक्ष्मीनारायण सुधांशु के सम्पादन में ‘राजकीय प्रशासन शब्दावली' का दो खण्डों मंे प्रकाशन हुआ।

(2) 1962 ई. में उत्तर प्रदेश शासन शब्दकोश प्रकाशित हुआ।

(3) इसी क्रम में मध्य प्रदेश में ‘प्रशासनिक शब्दकोष' और ‘शासन शब्द प्रकाश' का प्रकाशन हुआ।

(4) राजस्थान सरकार द्वारा 1971 में ‘हिन्दी प्रयोग मार्गदर्शिका' 1971 ई. में प्रकाशित की गयी।

(5) हरियाणा और हिमाचल में भी ‘प्रशासनिक शब्दकोश' प्रकाशित हुआ।

(6) केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय एवं वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के माध्यम से अनेक तकनीकी प्रकाशन सामने आए। भारत सरकार द्वारा ‘वृहद् प्रशासन शब्दावली' और ‘विधि शब्दावली' सामने आयी।

(7) 1950 ई. में ही ‘वैज्ञानिक शब्दावली मंडल' की स्थापना की गई। उसने लगभग दस वर्ष के अन्तराल में तीन लाख वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्द तैयार किये, जिनका प्रकाशन केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के माध्यम से 1981 के ‘पारिभाषिक शब्द संग्रह‘ नाम से किया गया।

(8) 1961ई. मंे ही भारत सरकार ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग का गठन किया। यह आयोग आज भी हिन्दी की सेवा कर रहा है।

(9) केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के अन्तर्गत ही ‘हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ भाषा कोश' की योजना बनाकर हिन्दी-अरबी, हिन्दी-चीनी, हिन्दी फ्रांसीसी तथा हिन्दी - स्पेनी आदि कोशों की रचना भी करायी।

हिन्दी को समर्थ बनाने के प्रयास स्वतन्त्रता के बाद से ही नहीं शुरू हुए हैं, यह प्रयास मुगल काल में ही प्रारम्भ हो गये थे। मुगल शासन काल में महाराजा शिवाजी के शासन-काल में पंडित रघुनाथ ने प्रशासन, खाद्य सामग्री, रक्षा-व्यवस्था आदि विषयों से सम्बन्धित लगभग डेढ़ हजार शब्दों का एक कोश तैयार किया था।

1845 में लन्दन में प्रो. डैकन कोसे द्वारा ‘हिन्दी मैनुअल' के दो भाग प्रकाशित कराये गये। 1848 में उनका ‘हिन्दी अंग्रेजी कोश' भी सामने आया। एच. एच. विल्सन ने 1855 मंे ‘ग्लॉसरी ऑफ जूडीशियल एण्ड रेवेन्यू टर्म्स' ग्रन्थ प्रकाशित किया।

आइये हम हिन्दी के उत्स की कथा जानें। हिन्दी की जननी संस्कृत है। लिपि, शब्दावली की दृष्टि से हिन्दी संस्कृत पर आधारित है और संस्कृत को ‘देव भाषा' इसी अर्थ में कहा जाता है कि वह पूर्ण है, समृद्ध है। संस्कृत में जो तकनीकी साहित्य रचा गया, आर्यभट्ट, वाराहमिहिर आदि ने क्या अंग्रेजी का मुँह ताका था ? नहीं। हमारी वैदिक गणित ;टमकपब डंजीमउंजपबेद्ध आज विश्व के दस विश्वविद्यालयों में शोध का विषय बन चुकी है तो क्या गणित के प्रत्येक सूत्र संकेत का उन्होंने अंग्रेजी अनुवाद किया है ? चिकित्सा क्षेत्र में हमारे ग्रन्थ आज अन्तर्राष्ट्रीय महत्व पा चुके हैं, क्या चरक, सुश्रुत, धन्वन्तरि द्वारा प्रयुक्त शब्दावली अपर्याप्त है। आवश्यकता, अविष्कार की जननी होेती है और यह बात हिन्दी पर भी लागू होती है। ज्यों - ज्यों व्यवहार बढ़ता जा रहा है हिन्दी मँजती चली जा रही है।

सूचना प्रौद्योगिकी:- इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से आकाशवाणी, दूरदर्शन, समाचार - पत्र के साथ ई - मेल (कम्प्यूटर) इंटरनेट तथा वेवसाइट आदि का महत्वपूर्ण स्थान है।

आज यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सूचना प्रौद्योगिकी का ऐसा विलक्षण विस्फोट हुआ, कि दुनिया में उसका महत्व स्वीकारा गया। भारत के सूचना प्रौद्योगिकी ज्ञान में पूरे विश्व में प्रतिष्ठा अर्जित की। आज बड़े-बड़े देश भारतीय तकनीकी व्यक्तियों को अपने यहाँ आमंत्रित करने में जुटे हैं। साथ ही हिन्दी का प्रयोग अब इन सभी क्षेत्रों में होने लगा है। आज र्इ्र-मेल हिन्दी में चल चुका है और उसका सार्वजनिक प्रयोग हो चुका है।

कम्प्यूटर, आरम्भ में विदेशी यंत्र माना जाता था। 1984 में इसको लोगों ने देखा था। यह अंग्रेजी का गुलाम था। कम्प्यूटर में न तो कभी हिन्दुस्तानी ज्ञान को महत्व दिया गया, न ही यहाँ की भाषा को। पर हमारे भारतीय इंजीनियरों (1983 मंे आई.आई.टी. कानपुर) ने एक ऐसी तकनीक विकसित की, जिसके माध्यम से कम्प्यूटर हिन्दी की देवनागरी लिपि में तो काम कर ही सकता था, भारत की अन्य भाषाओं मंे भी वह कार्य कर सकता था। इसका नामकरण हुआ-जिस्ट कार्ड ;ळतंचीपब प्दकपंद बतपचज ज्मतउपदंसद्ध। यह कार्ड कम्प्यूटर के ब्च्न् ;ब्मदजतंस च्तवबमेेपदह न्दपजद्ध अर्थात् केन्द्रीय संसाधक एकांश में लगाते ही अंग्रेजी जानने वाला कम्प्यूटर हिन्दी सीख जाता था और बड़ी सरलता से वह हिन्दी में काम करने लगता था। परिणाम यह हुआ कि हिन्दी का प्रयोग कम्प्यूटर पर बड़ी सहजता से होने लगा। आज बैंक भी हिन्दी अपना रहे हैं, और वहाँ के कम्प्यूटर हिन्दी में भी काम कर रहे हैं। बैंक के बाद कम्प्यूटर का प्रयोग सार्वजनिक रूप से रेल विभाग में प्रारम्भ हुआ। वहाँ आरक्षण के क्षेत्र में यह प्रयुक्त हुआ। फल यह हुआ कि वहाँ के कम्प्यूटर हिन्दी बोलने लगे और आरक्षण की स्थिति, गाड़ियों की स्थिति-आगमन, प्रस्थान के विषय में जानकारी मिलने लगी और अब तो और बेचारा कम्प्यूटर घर बैठे आपका आरक्षण भी कर देता है।

अब एकदम नई तकनीक आ रही है। हिन्दी को कम्प्यूटर के लिए उपयोगी बनाने में सबसे अधिक सहायता की, हमारी लिपि और वर्णमाला के ध्वन्यात्मक स्वरूप ने। इसी कारण जिस्ट तकनीक को आसानी से अपनाया जाने लगा। इसके सहयोग के लिए एक मानक कोडिंग प्रणाली की भी पर्याप्त महत्ता है जिसको ‘इस्की' ;प्दकपंद जंदकंतक ब्वकम वित प्दवितउंजपवद प्दजमतबींदहमद्ध कहा जाता है, इसके माध्यम से उच्च प्रौद्योगिकी ;भ्प्.ज्मबीद्ध के क्षेत्र में नागरी (हिन्दी) सहित अन्य भारतीय भाषाएँ भी आसानी से कम्प्यूटर पर काम कर रही हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि इसके लिए ‘इनस्क्रिस्ट' ;प्दकपंद स्ंदहनंहम बतपचजद्ध नाम से एक कंुजी पटल ;ज्ञमल ठवंतकद्ध बनाया गया है जो हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं तथा अंग्रेजी मंे भी काम कर सकता है, साथ ही लिप्यांतर की भी उसमें सामर्थ्य है।

अनुवाद कम्प्यूटर मंे अनुवाद की बड़ी समस्या थी, जिसे भी अब हल कर लिया गया है। पूना के ‘सी-डेक' (उच्च कम्प्यूटरी विकास केन्द्र) ;ब्मदजतम वित क्मअमसवचउमदज व ।कअंदबमक बवउचनजमतेद्धए ने ‘टैग' ;ज्तप ।करवपदपदह ळतंउद्ध का भी विकास कर लिया है।

इतना ही नहीं अब तो हिन्दी के सॉफ्टवेयर भी पर्याप्त मात्रा मंे उपलब्ध हैं जिनमें अक्षर, आलेख शब्दावली, शब्दरत्न, मल्टीवर्ड, संगम, देवबेस, नारद, चाणक्य, एप्पल, सुलिपि, भाषा आदि शब्दों का उल्लेख है।

धीरे-धीरे विकास की गति बढ़ती जा रही है और आज डॉस, विंडोज, और यूनिक्स परिवेश के अन्तर्गत हिन्दी मंे शब्द - संसाधन कार्य भी सहज सम्भव हो गया है। इसके साथ ही वर्तनी-संशोषक ;ैचमसस ब्ीमबामतद्ध तथा ‘ऑन लाइन शब्द कोश' सहित ई-मेल तथा वेव-प्रकाशन की तकनीक भी हिन्दी ज्ञाताओं ने विकसित कर ली है। ‘इस्फॉक' ;प्दजमससपदहमदबम ठमेज बतपचज थ्वदज ब्वकमद्धए लिप्स ;स्ंदहनंहम प्दकमदचमदकमदज च्तवहतंउउम नइजलचमेद्ध जैसी तकनीकें भी सामने आ गयी हैं। साथ ही फिल्मों के हिन्दी में भी शीर्षक देने की सुविधा उपलब्ध है।

अनुवाद के क्षेत्र में मशीनी अनुवाद हेतु भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान, कानपुर तथा हैदराबाद विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से एक तकनीक विकसित की गयी है जिसेे ‘अनुसारक' कहा जाता है साथ ही पूना के वैज्ञानिकांे द्वारा मन्त्र ;सी - डेक डंबीपदम ।ेेपेजंदज ज्तंदेसंजपवद स्वंकद्ध का भी विकास हो चुका है। इसके साथ ही आई.बी.एम. टाटा कम्पनी न भी आर. के. कम्प्यूटर्स के सहयोग से ‘हिन्दी डॉस' नाम से भी एक विशिष्ट तकनीक उपजायी है जिसमें ‘कमांड' और ‘मैन्यु' भी हिन्दी मंे ही उपलब्ध है।

कम्प्यूटर का हिन्दीकरण अभी रूका नहीं है और आगे भी नहीं रूकने वाला है। ‘मोटोरोला' ने 1997 में ही हिन्दी मंे ‘पेजर' का विकास कर दिया था।

खेल जगत में भी हिन्दी सर चढ़कर बोल रही है। खेल, हमारे लिए राष्ट्रीय सम्मान की वस्तु है, जिसने आज अन्तर्राष्ट्रªीय रूप ले लिया है। खेलों की जानकारी, खेलते समय खिलाड़ियों की स्थिति उनकी क्षमता, योग्यता, जय-पराजय का आँखों देखा हाल दूरदर्शन पर दिखाया जाता है और आकाशवाणी पर सुनाया जाता है। यह अंग्रेजी में तो आता ही है, क्योंकि अभी हम मंे गुलामी की ठसक बाकी है, पर हिन्दी आज इतनी समर्थ एवं सक्षम हो गयी है कि उसके माध्यम से आँखों देखा हाल सुनाया जाने लगा है। अब वे ही शब्द बोले जाते हैं जो हिन्दी के हैं- बल्ला, गेंद, बल्लेबाजी, गेंदबाजी।

इसी प्रकार ट्रिपिल जम्प को ‘त्रिकुट', लांग जम्प को' लम्बी कूद', हाई जम्प को ‘ऊँची कूद'। साथ ही दौड़ रन, पारी, अनिर्णीत, श्रृंखला, पगबाघा ;स्ण्ठण्ॅण्द्ध शब्दों का प्रयोग ही रहा है। साथ ही अंग्रेजी के वे प्रचलित शब्द जिन्हें आम आदमी भी समझ लेता है, वे भी डटकर प्रयोग हो रहे हैं, विकेट, बेट, पिच, स्टम्प, अम्पायर, ओपनिंग। हिन्दी का सामर्थ्य विकास का सही रूप यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली का बरबस हिन्दीकरण न किया जाये। जो शब्द जनता की चेतना में बैठे हैं, उन्हें उसी रूप में प्रयुक्त होने दिया जाय। कार, प्लेटफार्म, स्कूल, कॉलेज, कैण्टीन, रेलवे लाइन, सिग्नल, टिकट आदि। इसके कारण हिन्दी की व्यावहारिक क्षमता का विकास ही होगा।

इस भूमण्डलीकरण के दौर में हिन्दी कितनी समर्थ होती जा रही है यहाँ इसकी एक झलक मात्र ही प्रस्तुत की गयी है। हिन्दी सब दृष्टि से समर्थ थी, सक्षम थी। इस पर व्यर्थ के आरोप आज भी कम नहीं हुए हैं, पर हिन्दी निरंतर आगे बढ़ती चली जा रही है। आज मतदान में फोटो पहचान-पत्र, मतदाता सूचियाँ हिन्दी में आ चुकी हैं। साथ ही कई प्राचीन महत्वपूर्ण ग्रन्थ ;ब्संेेपबद्धए सी. डी. ;ब्वउचनजमत क्पेब वत टमकपव ब्ंेेमजजममद्ध में समा चुके हैं। ‘गीता', ‘उपनिषद्' आप ‘अंतरताने' ;प्दजमतदमजद्ध पर भी सुन सकते हैं। हमारे युवाओं ;प्ण्प्ण्ज्ण् ज्ञंदचनतद्ध ने ‘गीता सुपर साइट अन्तर क्षेत्र' का भी विकास करके यह बता दिया है कि हमारी हिन्दी विश्व भाषाओं में किसी से कम नहीं है।

हिन्दी में ग्लोबल संभावनाएँ:- ज्यों-ज्यों दुनिया ग्लोबल हो रही है, हिन्दी की माँग बढ़ रही है। विश्व के अनेक देशों में हिन्दी का अध्ययन हो रहा है। अनुवाद का काम भी हो रहा है। पिछले दिनों अमरीकी स्कूलों में भी हिन्दी पढ़ने की माँग बढ़ी है।

पहले भारत सरकार की भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् विभिन्न देशों मे तीन साल के लिए हिन्दी प्राध्यापक चुनकर भेजती थी, वह अब भी भेज रही है, पर अब अनेक देशों ने खुद भी नियुक्तियाँ करनी शुरू कर दी हैं। जापान, कोरिया, सिंगापुर में अब सीधे हिन्दी प्राध्यापक भर्ती हो रहे हैं। खाड़ी देशों के अलावा भी यूरोप, अमेरिका में भी हिन्दी शिक्षकों की माँग है।

- डॉ. सचिन कुमार

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संदर्भ: 1. हिन्दी साहित्य का इतिहास: डॉ नगेन्द्र, पृ. 200
2. हिन्दी साहित्य का इतिहास: आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, पृ. 317
3. आउटलुकः सम्पा. आलोक मेहता, नवम्बर 2009 अंक
4. इण्डिया टुडेः सम्पा. प्रभु चावला, सितम्बर 2010 अंक
5. हिन्दी का अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य प्रो. नरेश मिश्र, पृ. 27 - 31

मो. नं. 9027388806
ई-मेल: sachindr01@gmail.com
पत्राचार- डॉ. सचिन कुमार
मौहल्ला सराय भोजराज,
तहसील अतरौली, जिला अलीगढ़
पिन कोड 202280 उत्तर प्रदेश (भारत)

* लेखक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व शोध छात्र हैं.

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