अमन का और मोहब्बत का ना तू फ़रमान बन पाया,
तू दुनिया में बना क्या-क्या; ना एक इंसान बन पाया|
मज़हब कोई सिखाए ना, जो नफ़रत क़ैद है तुझमें,
तू ना ही शंख का सुर है; ना तू अज़ान बन पाया|
पराये क्या और अपने क्या; तू सबको ही रुलाता है,
कि लोगों को हँसाने का ना तू अरमान बन पाया|
महज़ कागज़ के टुकड़े कुछ तेरी क़ीमत में शामिल हैं,
जो बाज़ारों का दुश्मन हो ना वो ईमान बन पाया|
तेरे ख़ूनी इरादे हैं; तू क़त्ल-ए-आम करता है,
किसी की जाँ बचा ले जो ना तू वो जान बन पाया|
- अफरंग