वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। - मैथिलीशरण गुप्त।

अक्कड़-बक्कड़ (काव्य)

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Author: मदन डागा

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो
भाग्य भरोसे तू मत सो।

अपना तो है ऐसा नेता
सब कुछ खाता हमें न देता
जनता रोती तो वो कहता
बोझ हमारा भी तू ढ़ो।

लेने वोट किया था वादा
जीता तो बन गया शहजादा
जिसे भेजते हम कुछ कहने
वह जाता संसद में सो।

जनता जिसके खातिर दौड़ी
वह फकीर बन गया करोड़ी
फुटपाथों पै रोते वोटर -
'पूछे कौन हमारे को।'

- मदन डागा

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