वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। - मैथिलीशरण गुप्त।

अभिमन्यु | क्षणिका (काव्य)

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Author: रमाशंकर सिंह

जब जब लड़ा अभिमन्यु
हर बार वही हारा है
अपनो ने नहीं दिया साथ
गैरों ने छल से मारा है

-रमाशंकर सिंह
ई-मेल: ramashankarsingh48@gmail.com

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