( 1)
पड़ा है रात का सपना अभी वहीं का
वही
जिस आधी रात में, हमको मिली थी
आजादी
उस आधी रात की किस्मत में सहर है
कि नहीं।
(2)
कुर्सियाने के नये तौर निकल आते हैं
अब तो लगता है, किसी से न मरेगा
रावण,
एक सिर काटिए, सौ और निकल
आते हैं।
(3)
इंतजार और अभी दोस्तो करना होगा,
रामलीला जरा कलियुग में खिंचेगी
लंबी,
लेकिन यह तय है कि रावाग को तो
मरना होगा।
- सूर्यभानु गुप्त
[बंजर भूमि पर इन्द्र धनुष]