वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। - मैथिलीशरण गुप्त।

भारतीय | कविता (काव्य)

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Author: जोगिन्द्र सिंह कंवल

लम्बे सफर में हम भारतीयों को
कभी पत्थर
कभी मिले बबूल

कभी मिट जाती कभी जम जाती
इतिहास  के  दर्पण  पर  धूल

जिस देश को अपनाया हमने
वह टूट  रहा  फिर  एक  बार


चमन यह बिगड़ा इस तरह
काँटे  बन  रहे  सारे  फूल

- जोगिन्द्र सिंह कंवल, फीजी

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