खुद ही बनाया औ' बिगाड़ा तकदीरों को
मैं मानता नहीं हाथ की लकीरों को।
महलों में रहें या कभी हों बेघर
फर्क पडता है कब फकीरों को।
कर्म अपने का फल मियाँ भोगो
कोसते क्यों हो भला तकदीरों को।
दुख गरीबों को ही बस नहीं होते
खुशियाँ मिलती नहीं सब अमीरों को।
- रोहित कुमार ‘हैप्पी'