हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। - शारदाचरण मित्र।

रत्न-करण (काव्य)

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Author: श्रीनाथ सिंह

जलाती जिसे क्रोध की आग,
धर्म का उसको बन्धन व्यर्थ
न सीखा जिसने करना त्याग,
प्रेम का वह क्या जाने अर्थ
रहा जिस पर आलस्य सवार,
मनुज वह जीवित मृतक समान।
लोभ ही है जिसका व्यापार,
बराबर उसे मान अपमान॥

-श्रीनाथ सिंह

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