रे मन दुर्जन को तजो, समझ नीच को कीच।
संग दोष टलता नहीं, रसे बसे मन बीच॥
एक बार की परख से, समझो श्याम स्वभाव।
सन्त कभी बदले नहीं, ना बदले शठ भाव॥
दल बल छल से चल रहा, कलियुग कारोबार।
धन ही सबका देवता, स्वार्थ का व्यवहार।।
हे हरि जग धोखा करे, झूठ बनाए भाव।
निर्बल को देखत नहीं, सबल संग का चाव।।
रोज़-रोज़ हरि बंदगी, रोज़-रोज़ हरि ध्यान।
फिर निश्छल निज कर्म हो, तो मिलते भगवान।।
वय बढ़ने के साथ ही, बालक बने खयाल।
कब रूठे कब हँस पड़े, बूझो भला मजाल।।
लाख विपद आए मना, मत छोड़ो हरि हाथ।
कठिन काल में नाथ ही, देते भक्तन साथ॥
धन तेरी फितरत मना, धन तेरी भव चाह।
दुख मिलते हरि-हरि भजे, सुख में बेपरवाह॥
मान मना निज कर्म का, युद्ध क्षेत्र संसार।
हरि होए से जीत है, हरि खोए से हार॥
अपने ही व्यवहार से, सुख दुख मिलता श्याम।
भली सोच से सुख मिले, बुरी बिगाड़े काम।।
नेक कमाई कर मना, तभी कटे भव फंद।
पेट भरण हरि कर रहे, फिर क्यों सोचे मंद॥
मैं-मैं ही दुख धुन मना, जो तू गाए रोज़।
तभी नहीं पल सुख तुझे, तभी नहीं मुख ओज।।
चतुर भाव मन एक ही, हरि चरणन में प्रीत।
और चतुरपन जगत का, भर्म भाव की जीत॥
मन अब हरि के घर चलो, बहुत हुआ जग प्यार।
कौन मिला सच्चा यहां, सब स्वार्थ के यार।।
श्याम भजन में मन डटे, तो मानो हरि साथ।
भजन भाव से मन हटे, समझो भए अनाथ।।
रे मन दूजा क्या करे, उसका छोड़ विचार।
निज पथ के काँटे हटा, निज का जन्म सुधार॥
सब हरि का हरि का दिया, हरि अर्पण कर श्याम।
दास धर्म सेवा कर्म, हर पल रहे अकाम।।
कल कितने जन मर गए, जग मेले के बीच।
शेष भूल इस बात को, हंसें खेलें नीच।।
धन बल से संतोष क्या, क्या पद का अभिमान।
जीवन भर का ज्ञान ये, सुख सुमिरन भगवान।।
अहं मार से मर गए, आज और इंसान।
तो भी जग ढ़ूंढ़े नहीं, भीषण व्याधि निदान॥
-श्याम लाल शर्मा
आनंद एवेन्यू, टीचर्ज कालोनी
समरहिल, शिमला, हिमाचल प्रदेश, भारत
ई-मेल: sshyamlal93@yahoo.com