भाषा और राष्ट्र में बड़ा घनिष्ट संबंध है। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

ओरछा : जहां राजा राम को दी जाती है हर रोज सशस्त्र सलामी (विविध)

Print this

Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'

मध्य प्रदेश में भगवान राम का एक ऐसा मंदिर है जहां वे राजा के रूप में पूजे जाते हैं। यहाँ उनकी केवल आरती ही नहीं बल्कि पुलिस वाले उन्हें सशस्त्र सलामी (गार्ड ऑफ ऑनर) भी देते हैं। राजा राम का यह मंदिर मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के ओरछा में स्थित है। इस मंदिर को ‘राजा राम मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर प्रसाद के रूप में भक्तों को पान का बीड़ा दिया जाता है। इस मंदिर में पूजा करने लोग दूर-दूर से आते हैं। विदेशी सैलानियों का भी जब मध्य प्रदेश आगमन होता है तो वे ओरछा के इस मंदिर के दर्शन के अभिलाषी रहते हैं।

वैसे सशस्त्र सलामी (गार्ड ऑफ ऑनर) सूर्यास्त के पश्चात् दिए जाने का विधान नहीं है लेकिन यहाँ सूर्यास्त के बाद भी राजा रामचंद्र को सशस्त्र सलामी दी जाती है। यह भी दिलचस्प है कि ओरछा नगर के परिसर में यह 'गार्ड ऑफ ऑनर' राजा राम के अतिरिक्त देश के किसी भी व्यक्ति को नहीं दिया जाता, फिर बेशक वे देश के प्रधानमंत्री हों या राष्ट्रपति। यह विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां श्री राम को 'गार्ड ऑफ ऑनर' दिया जाता है।

बुंदेलखंड की अयोध्या कहे जाने वाले ओरछा को भगवान का निवास कहा जाता है, इस संदर्भ में एक दोहा है--

सर्व व्यापक राम के दो निवास हैं खास।
दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास॥

यहाँ स्थानीय तौर पर लोग कहते हैं--

'राम के दो निवास खास,
दिवस ओरछा रहत,
शयन अयोध्या वास।'

यानी, रामचन्द्र जी दिन में ओरछा और रात में अयोध्या चले जाते हैं। प्रतिदिन रात में संध्या की आरती होने के बाद ज्योति निकलती है, जो कीर्तन मंडली के साथ पास ही पाताली हनुमान मंदिर ले जाई जाती है। मान्यता है कि ज्योति के रूप में भगवान श्रीराम को हनुमान मंदिर ले जाया जाता है, जहां से हनुमान जी शयन के लिए भगवान श्रीराम को अयोध्या ले जाते हैं।

मंदिर से जुड़ी रोचक जनश्रुति

ओरछा और अयोध्या का संबंध करीब 600 वर्ष पुराना है. कहते हैं कि संवत 1631 में चैत्र शुक्ल नवमी को जब भगवान राम ओरछा आए तो उन्होंने संत समाज को यह आश्वासन भी दिया था कि उनकी राजधानी दोनों नगरों में रहेगी. तब यह बुन्देलखण्ड की 'अयोध्या' बन गया।

कहते हैं कि ओरछा की महारानी कुंवरि गणेश ( महारानी गणेशकुंवर) राम की परम भक्त थीं। वह 16वीं शताब्दी में राम के बाल रूप को अयोध्या से ओरछा पैदल लेकर आई थीं।

जनश्रुति के अनुसार ओरछा के शासक मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे, जबकि उनकी महारानी कुंवरि गणेश, राम उपासक थी। इसके चलते दोनों के बीच अक्सर कहा-सुनी हो जाती थी।एक बार मधुकर शाह ने रानी के आगे वृंदावन जाने का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की हठ की। इसपर राजा ने व्यंग्य किया कि यदि तुम्हारे राम वास्तव में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ।

महारानी अयोध्या गईं और वहाँ तप किया। 21 दिन तप करने पर भी जब उनके आराध्य प्रभु राम प्रकट नहीं हुए तो महारानी सरयू नदी में कूद गईं। महारानी की भक्ति देखकर भगवान राम बाल स्वरूप नदी के जल में ही उनकी गोद में आ विराजे। श्रीराम जैसे ही महारानी की गोद में बैठे तो महारानी ने ओरछा चलने का आग्रह किया। भगवान राम ने तीन शर्तें रखीं। पहली, मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से उठूंगा नहीं। दूसरी, राजा के रूप में विराजमान होने के बाद वहां पर किसी ओर की सत्ता नहीं चलेगी और तीसरी स्वयं बाल रूप में पैदल पुष्य नक्षत्र में साधु-संतों के साथ चलेंगे। महारानी ने तीनों शर्तें सहर्ष स्वीकार कर ली।

ओरछा के महाराजा को जब यह समाचार मिला तो वे भी प्रसन्न हो गए। उनके लिए चतुर्भुज मंदिर का भव्य निर्माण कराया गया लेकिन महारानी जब अपने महल में पहुंची तो उन्होंने राम लला को एक बार रसोई घर में बिठा दिया। बस! शर्त के अनुसार, वे अब वहीं बस गए। उनके लिए बनाया गया मंदिर सुना रह गया। श्री राम अब भी इसी महल में विराजमान हैं, अब इसे 'राजा राम मंदिर' कहा जाता है और यहीं राजा राम के रूप में उनकी पूजा-अर्चना और सलामी होती है।

प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी'

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश