मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।

माओई और सूरज (कथा-कहानी)

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Author: रोहित कुमार ‘हैप्पी'

बहुत पहले सूरज आसमान में बड़ी तीव्रता से विचरण करता था। उस समय दिन छोटे और रातें बहुत लंबी होती थीं।

लोग इससे अप्रसन्न थे। उन्हें न शिकार करने के लिए पर्याप्त समय मिलता, न मछली पकड़ने को और न ही वे अन्य वांछित काम कर पाते थे। हर कोई चाहता था कि दिन लंबा हो लेकिन किसी के पास इस समस्या का हल नहीं था।

एक युवक जिसका नाम माओई था, ने लोगों को शिकायत करते हुए सुना। उसने इसपर ध्यान नहीं दिया। उसने सोचा, "अगर दिन लंबे हुए तो उसे और अधिक मेहनत करनी पड़ेगी।"

एक दिन माओई ने अपनी पत्नी से आग जलाकर खाना बनाने को कहा। उसकी पत्नी आग जलाकर खाना बनाने लगी। खाना पकने से पहले ही सूरज अस्त हो गया। माओई ने जैसे-तैसे अंधेरे में ही खाना खाया।

"सूरज बहुत जल्दी अस्त हो जाता है।" माओई अप्रसन्न था। उसने अपने चारों भाइयों को बुलाया।

"सूरज की गति धीमी करने के लिए तुम्हें मेरी मदद करनी चाहिए।"

"माओई के भाई उस पर हँसे। "यह असंभव है," उन्होंने कहा, "सूरज बहुत तप्त है।"

माओई ने अपने भाइयों से कहा, "मेरे पास एक योजना है। हम हरी सन की मजबूत रस्सियों बनाएँगे और हम पूरब में उदय होते सूरज को पकड़ लेंगे।" माओई और उसके भाइयों ने सन काटकर रस्सियां बना लीं।

रस्सियों तैयार कर, माओई और उसके भाई पूरब में उस स्थान की खोज में चल दिए जहां से हर रोज सूरज उदय होता था। माओई व उसके भाइयों ने रस्सियाँ उठा लीं और माओई ने अपना मायावी अस्त्र साथ ले लिया। उन्होंने दर रात को कूच किया ताकि सूरज उन्हें देख न पाए।

अंत में वे उस अंधियारे स्थान पर जा पहुंचे जहां एक बड़े काले छिद्र के भीतर सूर्य निद्रामग्न था। उन्होंने छेद पर रस्सियाँ बिछा दीं। वे वहीं छिपकर सूरज के निकलने की प्रतीक्षा करने लगे।"

सूरज धीरे-धीरे उदित होने लगा। माओई चिल्लाया, "खींचो!" भाइयों ने रस्सियाँ जोर से खींची तो सूरज चिल्लाया, "मुझे जाने दो! मुझे जाने दो!"" भाइयों ने रस्सियों पर अपनी पकड़ और कस ली।
सूरज मुक्त होने के लिए संघर्ष कर रहा था लेकिन माओई बार-बार अपने मायावी अस्त्र से सूरज पर प्रहार कर रहा था। सूरज मुक्त नहीं हो पाया। वह न तो मजबूत हरी रस्सियाँ जला पाया और न ही माओई पर सूरज की गरमी का कोई प्रभाव पड़ा। माओई अपने मायावी अस्त्र के कारण सुरक्षित था।

जब सूरज बहुत थक गया तो भाइयों ने रस्सियाँ पर अपनी पकड़ ढीली कर दी। सूरज आकाश में धीरे-धीरे उदय होने लगा।

उस दिन के बाद, सूरज की गति धीमी हो गई। वह हर दिन आकाश में धीरे-धीरे उदय होने लगा। अब दिन बहुत लंबे रहने लगे और सूरज अस्त होने से पहले माओई के पास खाने के लिए भी पर्याप्त समय रहता था।"

भावानुवाद : रोहित कुमार ‘हैप्पी'
www.bharatdarshan.co.nz

 

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