कोरोनासुर
विपदा बन कर
टूटा भू पर।
**
यह कोरोना
सकल जगत का
अक्ष भिगोना।
**
कोरोना पर
मुख को ढककर
आओ बाहर।
**
कोरोना यह
जगत रहा सह
कैदी सा रह।
**
कोरोना अब
निगल रहा सब
जायेगा कब?
-बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया, असम, भारत
ई-मेल: basudeo@gmail.com
कोरोना हाइकु (काव्य) |
कोरोनासुर
विपदा बन कर
टूटा भू पर।
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यह कोरोना
सकल जगत का
अक्ष भिगोना।
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कोरोना पर
मुख को ढककर
आओ बाहर।
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कोरोना यह
जगत रहा सह
कैदी सा रह।
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कोरोना अब
निगल रहा सब
जायेगा कब?
-बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया, असम, भारत
ई-मेल: basudeo@gmail.com