जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

जै-जै कार करो (काव्य)

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Author: अजातशत्रु

ये भी अच्छे वो भी अच्छे
जै-जै कार करो
डूब सको तो
चूल्लू भर पानी में डूब मरो

लेकर आप बिराजै लड्डू
दोनों हाथों में
मुँह के मीठे
अवसरवादी
रिश्ते-नातों में

अब तो मुई सफ़ेदी आई
कुछ तो शर्म करो
भीतर चुप्प मुखौटे बोले
हँसकर गले मिले
ईर्ष्याओं के द्वार
हृदय के पन्ने जले मिले
कुशलक्षेम तो पूछो लेकिन
अवगुन चित न धरो

-अजातशत्रु

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