वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। - मैथिलीशरण गुप्त।

मीठी लोरी  (काव्य)

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Author: डाक्टर सईद अहमद साहब 'सईद' बरेलवी

लाडले बापके, अम्मा के दुलारे सो जा,
ऐ मेरी आँख के तारे, मेरे प्यारे सो जा।
गोद में रोज जो रातों को सुलाती है तुझे,
मीठी वो नींद तेरी, देख, बुलाती तुझे॥

दबके सोते में वो करवट से कहीं टूट न जाय,
ला मैं अलमारी में रख दूँ तेरा घोड़ा, तेरी गाय ।
फूल बागों से तेरे वास्ते चुनकर लायी,
जा मेरी जान ! वो लेने तुझे परियाँ आयीं ॥

बन्द रख पलकों की डिबिया में ये हीरे अनमोल,
माँ तेरी कुर्बान बस अब आँख न खोल ।
सो ले जब तक नहीं आते हैं तेरे काम के दिन,
और दो चार बरस हैं अभी आराम के दिन ॥

फिर तो ये फ्रिक पड़ेगी कि सबक याद करें,
मुफ़्त सो सोके न यूँ वक्त को बरबाद करें।
होगा इस नन्हें से दिल में फ्रिकों का हुजूम,
दिन तो दिन, रात को भी चैन से सोना मालूम॥

ले बहुत देर हुई अब मुझे गाते, सो जा।
ऐ मेरे चाँद, मेरे नींद के माते ! सो जा ।।

-डाक्टर सईद अहमद साहब 'सईद' बरेलवी
[नया चमन]

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