अपने होने का पता मिलता नहीं
आजकल वो बेवफ़ा मिलता नहीं
उसके घर का रास्ता जबसे मिला
अपने घर का रास्ता मिलता नहीं
कुलबुलाते चेहरों की भीड़ में
आदमी का चेहरा मिलता नहीं
बज़्म के उन कहकहों का क्या हुआ ?
क्यों कोई हँसता हुआ मिलता नहीं ?
ज़र्रे ज़र्रे में है जब उसका वजूद
क्यों हमें फिर भी खुदा मिलता नहीं
जिसने अपनी कुव्वतें पहचान लीं
उसको फिर दुनिया में क्या मिलता नहीं
-विजयकुमार सिंघल