वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। - मैथिलीशरण गुप्त।

ऐ ज़िन्दगी मत पूछ (काव्य)

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Author: शांती स्वरूप मिश्र

ऐ ज़िन्दगी मत पूछ, कि कितना करम बाक़ी है !
कितने तूफ़ान आने हैं, और कितना ग़म बाक़ी है !

देखनी है अभी तो अपने परायों की असलियत भी,
कितनों के दिल हैं पत्थर, कितनों में रहम बाक़ी है !

छलती रही है ये दुनिया न जाने कितनी तरह से,
देखना है कि लोगों में अभी, कितनी शरम बाक़ी है !

अरे न कर हौसले पस्त वरना तू कैसे जी सकेगा,
न भूल कि दुनिया में अभी, कुछ तो धरम बाक़ी है !

न उलझ तू बीते ज़माने के उन फसानों से "मिश्र",
तेरी ज़िन्दगी का तो अभी, अंतिम कदम बाक़ी है !

शांती स्वरूप मिश्र
ई-मेल: 1952@gmail.com

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