वो हर बरस आता है
और...
मेरी उम्र का दर खटखटाता है।
मैं घबरा कर उठती हूं, उफ्फ़ तुम!
वो मुझसे नजरें मिलाता है, मैं झुका लेती हूँ।
मैं बुझे-से मन से उसे आने को कहती हूँ।
'कहो कैसे हो? क्या किया बरस भर?'
वो मेरे हर पल, हर दिन का हिसाब मांगता है।
मैं अपराधी की भांति नजरें झुकाए बैठी रहती हूँ।
वो मुझसे बहुत नाराज होता है,
मैं हर बार की तरह झूठे वादे करती हूँ;
तुम अगले बरस आओगे,
तो मुझे
यूं न पाओगे!
- वंदना भारद्वाज