लाल देश पे क़ुर्बान हुआ सूनी हुई एक माँ की झोली किस रंग खेलूँ अबके होली...
हरे-भरे वन उपवन झुलसे कहाँ बयार अब करे ठिठोली किस रंग खेलूँ अबके होली...
नीला अम्बर भी निस्तब्ध हुआ दुर्लभ हुई पंछियों की टोली किस रंग खेलूँ अबके होली...
इंदरधनुष के रंग न देखे बरखा में कब भीगी चोली किस रंग खेलूँ अबके होली...
दुनिया के दस्तूर बदलते रंगों से अब कहाँ रंगोली किस रंग खेलूँ अबके होली...
-विवेक जोशी "जोश" vivekj689@gmail.com
|