साधु पेट बड़ा जाना। यह तो पागल किये जमाना।। मात पिता दादा दादी घरवाली नानी नाना। सारे बने पेट की खातिर बाकी फकत बहाना।। पेट हमारा हुंडी पुर्जो पेट हि माल खजाना। जबसे जन्मे सिवा पेट के और न कुछ पहचाना।। लड्डू पेड़ा पूरी बरफ़ी रोटी साबूदाना। सब जाता है इसी पेट में हलवा दाल मखाना ।। बाहर धर्म्म भवन शिव मंदिर क्या ढूंढे दीवाना। ढूंढो इसी पेट में प्यारो तब कुछ मिले ठिकाना।।
- बालमुकुंद गुप्त
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