भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
ठण्डी का बिगुल (काव्य)  Click to print this content  
Author:सुशील कुमार वर्मा

शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के,
मौसम ने यूं पलटा खाया,
शीतल हो उठा कण-कण धरती का,
कोहरे ने बिगुल बजाया!


हीटर बने हैं भाग्य विधाता,
चाय और कॉफी की चुस्की बना जीवनदाता,
सुबह उठ के नहाते वक्त,
बेचैनी से जी घबराता!


घर से बाहर निकलते ही,
शरीर थरथराने लगता,
लगता सूरज अासमां में आज,
नहीं निकलने का वजह ढूढ़ता!


कोहरे के दस्तक के आतंक ने,
सुबह होते ही हड़कंप मचाया,
शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के
मौसम ने यूं पलटा खाया!


दुबक पड़े इंसान रजाईयों में,
ठण्ड की मार से,
कांप उठा कण-कण धरती का
मौसम की चाल से!


बजी नया साल की शहनाईयां,
और क्रिसमस के इंतज़ार में,
झूम उठी पूरी धरती,
अपने-अपने परिवार में!


शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के,
मौसम ने यूं ही पलटा खाया,
शीतल हो उठा कण-कण धरती का,
कोहरे ने बिगुल बजाया!

- सुशील कुमार वर्मा
  ई-मेल: sushilkumarverma697@gmail.com

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