कुछ लिखोगे तुमने कहा था न कुछ लिखोगे लिखोगे धूप मेरे माथे पर हथेलियों में बरसात का पानी लिखोगे तुलिका में लिपटे रंगों की रंगीन तरलता लेकर सूर्य की किरणों से पिघलते ध्रुवों के पानी में लिखोगे मेरा नाम सांसों की गर्माहट से ? बोलो न लिखोगे, क्या लिखोगे ?
परागकणों को सहेजकर क्या सजाओगे मेरे काले घने केशों पर या उसमें काली रात लिखोगे पहाड़ के ऊपर बादलों की वाष्प में क्या लिख सकोगे कोई प्रेमगीत यदि हाँ तो बोलो कब लिखोगे ?
नदी के चिकने पत्थर सी मेरी आँखों में टकराता है तुम्हारा शीतल स्वच्छ प्रेम तुम हिमालय के ह्रदय से बहकर मेरी आँखों को आकृतियों में ढालते हो क्या तुम भी मेरी तरह समर्पित हो सकोगे ?
किताबों के बीच में सूखे हुए गुलाब सा मेरा प्रेम एक धरोहर सा है क्या इसकी कीमत समझ सकोगे यादों से खुरच खुरच कर क्या वर्तमान लिख सकोगे तुमने कहा था न कुछ लिखोगे मुझपर बोलो क्या लिखा अब तक ?
- मिताली खोड़ियार ई-मेल: mitalikhodiyar305@gmail.com |