मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
तीन कवितायें (काव्य)  Click to print this content  
Author:डॉ.प्रमोद सोनवानी

पर्यावरण बचाना है

 

धरा को स्वर्ग बनाना है,
पर्यावरण बचाना है ।
गाँव-गाँव हर गली -गली में,
हमको वृक्ष लगाना है ।।1।।
पेड़-पौधे देते हैं जग को,
शीतल छाया और हवा ।
इसलिए मिल-जुलकर हमको,
करना है वृक्षों की सेवा ।।2।।
परम हितैषी पेड़ सभी,
अब न काटें इसे कभी ।
मिल-जुलकर अब वृक्षों की,
देखभाल करेंगे हम सभी ।।3।।
वृक्षारोपड़ करना है,
जीवन सुखद बनाना है ।
प्यारे बच्चों इस दुनियाँ में,
पर्यावरण बचाना है ।।4।।

 

 

उड़न खटोला

जा रहा था पढ़ने शाला ,
कंधे पर लटकाकर झोला ।
ठिठक गया था अजी देखकर ,
नील गगन में उड़न खटोला ।।1।।

रंग -बिरंगे रंगों से जी ।
सजा हुआ था उड़न खटोला ।।2।।

तेज गति से सर-सर, सर-सर ।
उड़ रहा था उड़न खटोला ।।3।।

सचमुच देखा था मैं उस दिन ।
सपने में इक उड़न खटोला ।।4।।

 

नाना जी के आँगन में


दाना चुगती,चिड़िया रानी ,
नाना जी के आँगन में ।
चिं-चिं,चिं-चिं गाना गाती ,
नाना जी के आँगन में ।।1।।
बड़ी सलोनी है मतवाली ,
खूब फुदकती डाली-डाली ।
रंग जमाने को आ जाती ,
नाना जी के आँगन में ।।2।।
नदियाँ-झीलें , ताल-तलैया ,
खेत-खार में जाती भैया ।
फिर सुस्ताने को आ जाती ,
नाना जी के आँगन में ।।3।।

- डॉ.प्रमोद सोनवानी "पुष्प"
संपादक- "वनाँचल सृजन"
"श्री फूलेंद्र सहित्य निकेतन"
तमनार, पड़ीगाँव-रायगढ़ (छ.ग.)
भारत

 

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