मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
भविष्य कहीं गया  (काव्य)  Click to print this content  
Author:कुसुम दादसेना

था एक जोड़ा, किया था उन्होने प्रेम विवाह 
पर उनकी जिंदगी हो गई तबाह
पैदा किए उन्होंने बच्चे दो
पर उनका भविष्य कहीं गया है खो

बीच मझधार मे दुनिया छोड़ चला बाप
माँ ने मुंह मोढ़ लिया बच्चों से साफ-साफ
बच्चे हो चले है अनाथ
आभास नहीं कोई है उनके माँ-बाप

चाचा चाची से मिलता है उन्हें माता-पिता का प्यार,
दादा-दादी भी देते हैं दुलार
पर कितने दिनों तक?
कभी नही हो सकता उनके भविष्य में सुधार
क्योंकि ग़रीबी है उनका मूलाधार..

- कुसुम दादसेना

ई-मेल: [email protected]

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