भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
उड़ान (काव्य)  Click to print this content  
Author:राज हंस गुप्ता

ऊँचे नील गगन के वासी, अनजाने पहन पाहुन मधुमासी,
बादल के संग जाने वाले,
पंछी रे, दो पर दे देना !
सीमाओं में बंदी हम, अधरों पीते पीड़ा का तम:
तुम उजियारे के पंथी, मेरी अंधियारी राह अगम!
बांहों पर मोती बिखराए, आँखों पर किरणें छितराए,
ऊषा के संग आने वाले
पंछी रे, दो पर दे देना !
तुमसे तो बंधन अनजाने, तुम्हें कौन-से देस बिराने?
मैं बढूं जिधर उधर झेलूं अवरोधक जाने पहचाने|
अधरों पर मधुबोल संजोये, पावनता में प्राण भिगोये,
मुक्ति-गान सुनाने वाले
पंछी रे, दो पर दे देना !

- राज हंस गुप्ता
profgupt@gmail.com

 

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