ऊँचे नील गगन के वासी, अनजाने पहन पाहुन मधुमासी, बादल के संग जाने वाले, पंछी रे, दो पर दे देना ! सीमाओं में बंदी हम, अधरों पीते पीड़ा का तम: तुम उजियारे के पंथी, मेरी अंधियारी राह अगम! बांहों पर मोती बिखराए, आँखों पर किरणें छितराए, ऊषा के संग आने वाले पंछी रे, दो पर दे देना ! तुमसे तो बंधन अनजाने, तुम्हें कौन-से देस बिराने? मैं बढूं जिधर उधर झेलूं अवरोधक जाने पहचाने| अधरों पर मधुबोल संजोये, पावनता में प्राण भिगोये, मुक्ति-गान सुनाने वाले पंछी रे, दो पर दे देना !
- राज हंस गुप्ता profgupt@gmail.com
|