दयानन्द आनन्द दाता, ॠषि था, सुधा-सार सबको पिलाता ॠषि था । महत् था, मधुरतम, महा क्रातिकारी, दयामय दया का था अनुपम पुजारी ।
सभी भेदभावो को जग से मिटाना, अँधेरे मतो को हटाना था ठाना । वह सच्चा था योगी, युगो का विजेता, मनुज मात्र का था अकेला ही नेता ।
न उस सा था कोई, न आगे भी होगा, ॠषि सा न कोई सुधारक भी होगा । सभी को बचाया, सभी को उठाया, कातिल भी सीने से जिसने लगाया ।
महादेव देवो का सरताज वह था, महापूत पावन पवन वेग वह था । उसे रोक पाया न तूफान युग का, उसे बांध पाया न जंजाल जग का ।
वह सब का गुरु था सफल मंत्रदाता, सकल मानवों का वही एक त्राता । उसी ने दिखायी थी जीवन की राहे, उसी ने सुनी दीन जन की कराहे ।
सुनो बात ॠषि की, उसी पर चलो सब, सभी भेदभावो की भाषा हटा दो । सचाई के रस्ते को मानो सभी तुम, पापो की गठरी जला दो, मिटा दो ।
-भारतेन्द्र नाथ
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