हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है। - मैथिलीशरण गुप्त।
सुनो बात ॠषि की  (विविध)  Click to print this content  
Author:भारतेन्द्र नाथ

दयानन्द आनन्द दाता, ॠषि था,
सुधा-सार सबको पिलाता ॠषि था ।
महत् था, मधुरतम, महा क्रातिकारी,
दयामय दया का था अनुपम पुजारी ।


सभी भेदभावो को जग से मिटाना,
अँधेरे मतो को हटाना था ठाना ।
वह सच्चा था योगी, युगो का विजेता,
मनुज मात्र का था अकेला ही नेता ।


न उस सा था कोई, न आगे भी होगा,
ॠषि सा न कोई सुधारक भी होगा ।
सभी को बचाया, सभी को उठाया,
कातिल भी सीने से जिसने लगाया ।


महादेव देवो का सरताज वह था,
महापूत पावन पवन वेग वह था ।
उसे रोक पाया न तूफान युग का,
उसे बांध पाया न जंजाल जग का ।


वह सब का गुरु था सफल मंत्रदाता,
सकल मानवों का वही एक त्राता ।
उसी ने दिखायी थी जीवन की राहे,
उसी ने सुनी दीन जन की कराहे ।


सुनो बात ॠषि की, उसी पर चलो सब,
सभी भेदभावो की भाषा हटा दो ।
सचाई के रस्ते को मानो सभी तुम,
पापो की गठरी जला दो, मिटा दो ।

-भारतेन्द्र नाथ

Previous Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश