फलाँ-फलाँ इलाके में पड़ा है अकाल खुसुर-पुसुर करते हैं, ख़ुश हैं बनिया-बकाल छ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकाल –अनाज रहेगा खत्तियों में बन्द !
हड्डियों के ढेर पर है सफ़ेद ऊन की शाल… अब के भी बैलों की ही गलेगी दाल ! पाटिल-रेड्डी-घोष बजाएँगे गाल… –थामेंगे डालरी कमंद !
बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल मिला टिकट? आपको मुबारक हो नया साल –अब तो बाँटिए मित्रों में कलाकंद !
- नागार्जुन
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