उड़ते हुए मुझे बहुत दूर जाना है पंखो में न जोर, ना ही सहारा है।
ये भी क्या कम था जो... शिकारी ने मुझ पर थामा निशाना है होकर लहू लुहान गिरा में भू पर देख रहा मुझे सारा ज़माना है।
लेकिन मेरा मन अभी नही हारा है उठा में झटपट ...और उड़ा क्योकि... मुझे बहुत दूर जाना हे।
- सोहेल खान ई-मेल: sibu.khan033@gmail.com
|