किरणों की अंगड़ाई जैसे पौ यूं फट फट आई जैसे रात की चीं-चीं चुप्पी साधी भोर भी यूं बौराई जैसे पाखी शोर मचाने वाले उनकी तो बन आई जैसे हवा बहे हौले-हौले से अभी नई हो आई जैसे रात का यौवन भाया उसको कली फूल बन आई जैसे ओस की बूँदें मोती बनकर तडके दूध-नहाई जैसे रात के भारी कठिन पलों की भोर में हुई रिहाई जैसे जैसी मैंने आँखों देखीं वैसी तुम्हे बताई जैसे
-राजबीर देसवाल
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