बंदगी के सिवा ना हमें कुछ गंवारा हुआ आदमी ही सदा आदमी का सहारा हुआ
बिक रहे है सभी क्या इमां क्या मुहब्बत यहाँ किसे अपना कहे,रब तलक ना हमारा हुआ
अब हवा में नमी भी दिखाने लगी है असर क्या किसी आँख के भीगने का इशारा हुआ
आ गए बेखुदी में कहाँ हम नही जानते रह गई प्यास आधी नदी नीर खारा हुआ
शाख सारी हरी हो गई ,फूल खिलने लगे यूँ लगा प्यार उनको किसी से दुबारा हुआ
- रामकिशोर उपाध्याय |