मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
माँ (काव्य)  Click to print this content  
Author:मनीषा श्री

[कविता सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें]

 

माँ मुझको प्यारी है
जीवन की
सबसे
सुहानी कहानी है,
पर माँ का
सही मतलब
माँ बनकर जाना है,
अब समझ
आता है,
दूध का
आधा गिलास देखकर,
माँ
का चेहरा
क्यों उतर जाता है।

 

क्यों मेरा
मोटा शरीर भी
उसे हमेशा
कमज़ोर नज़र आता है ,
चुपके से
परांठे में
घी भर-भर के
खिलाने में ,
आखिर
उसे क्या
मज़ा आता है।

 

क्यों
मेरा उतरा चेहरा
सबसे
पहले उसी को
नज़र आता है
रात को
एक गराई भी
कम खाऊ तो,
उसका पेट
भूखा ही सो जता है।

 

क्यों
पापा से
मेरी सिफारिश
करते हुए,
वो डाँट खाती है,
और
उनकी रजामंदी
मिल जाने पर,
मुझसे ज्यादा
मेरी माँ खुश नज़र है।

 

क्यों
मेरे देर से आने पर
बार -बार
बालकॉनी के
चक्कर लगाती है,
और
मुझे आता देख
जल्दी से
घर की मंदिर का
दिया रोशन करती है,
और
मेरी सलामती की
ढेरो दुआ करती है।

 

जब तक
माँ नहीं बनी थी
सिर्फ
खुद के बारे में
सोचती थी,
आज पता चला
क्यों
मेरी माँ
मेरी कामयाबी के लिए
व्रत रखा करती थी।

 

मेरे सपनों में
रंग भरती थी,
मेरे पंखों को
उड़ान देती थी,
मेरे चेहरे का
नूर बरकरार रहे,
यह दुआ
सोते जागते वो
मुझे देती थी।

 

अपना सब हार कर
उसने मुझे बनाया है,
मेरी हर
छोटी से छोटी
जीत को,
होली और दीवाली
की तरह इस
घर में मनाया है।

 

भगवान
की तुलना
मेरी माँ से ना करो
भगवान
के यहाँ
सुनवाई में देर लगती है,
मेरी माँ
मेरे होंठों पर
आने से पहले ही
मेरी हर
ख्वाइश पूरी कर देती है।

- मनीषा श्री

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रचनाकार के बारे में


मनीषा श्री

 

आप एक भू-वैज्ञानिक हैं। रुड़की आई आई टी से प्रशिक्षित हैं और भू-विज्ञानी के रूप में कार्यरत हैं। देहली की रहने वाली हैं और आजकल मलेशिया में अपने परिवार के साथ रहती हैं। लेखन में रूचि है और काव्य रचना करती हैं।

 

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