भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
खेलो रंग से | कविता (काव्य)  Click to print this content  
Author:डॉ. श्याम सखा श्याम

खेलो रंग से
मगर ढंग से
जीयो सखा उमंग से
मौज से, तरंग से
गाओ गीत अहंग से

होली में परहेज
करो ना भंग से
हाँ, बचें जरूर
आपसी जंग से
नाचो निहंग से
भागो दूर दबंग से
सीखो यह सब अनंग से

- डॉ. श्याम सखा श्याम

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