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कुछ सुन रहा थालगा कुछ खनक रहा थापर विश्वास थाकि आडे आ रहा थाजुनून थाकि अपने होने का अहसास करा रहा था
आंखे देख नही पा रही थीकि धुंध हटने क नाम नही थीइन्ही सब के बीच थीजिन्दगी मेरीजो मुझ से कुछ कह रही थी
- अरविंद सैन
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