भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
नेता जी की शिकायत (काव्य)  Click to print this content  
Author:प्रवीण शुक्ला

एक कवि-सम्मेलन में
'नेता जी' मुख्य अतिथि के रूप में आये हुए थे,
परन्तु गुस्से के कारण
अपना मुँह फुलाये हुए थे ।
उपस्थित अधिकांश कवि
नेताओं के विरोध में कविता सुना रहे थे,
इसलिए, नेता जी को
बिल्कुल भी नहीं भा रहे थे ।
जब उनके भाषण का नम्बर आया
तो उन्होंने यूँ फ़रमाया-

इस देश में
बिहारी और भूषण की परम्परा का कवि
न जाने कहाँ खो गया है,
अब तो सत्ता की आलोचना करना ही
कवियों का काम हो गया है ।

मैंने कहा-
श्रद्धेय, श्रीमान जी,
हम आज भी करते हैं
आपका पूरा-पूरा सम्मान जी,
लेकिन राजनीति में
अपराधियों की बढ़ती हुई संख्या
एक ही कहानी कह रही है,
ईमानदारों की संख्या तो आजकल
मुश्किल से दो प्रतिशत ही रह रही है ।
जब आप इस प्रतिशत को
उल्टा करके दिखायेंगे,
तो हम भी एक बार फिर से
भूषण और बिहारी की
परम्परा को निभाएंगे ।

आपके सम्मान में गीत गाएंगे,
गीतों में आपका अभिनन्दन करेंगे
आपके चरणों मैं सुबह-शाम वन्दन करेंगे ।

- प्रवीण शुक्ला
साभार - हँसते हँसाते रहो

 

Posted By vijay kumar   on Saturday, 23-Jul-2016-06:10
 
अच्छा प्रयास है
 
 
Posted By sara khan   on Wednesday, 22-Jul-2015-13:45
 
wow
 
 
Previous Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश