एक कवि-सम्मेलन में 'नेता जी' मुख्य अतिथि के रूप में आये हुए थे, परन्तु गुस्से के कारण अपना मुँह फुलाये हुए थे । उपस्थित अधिकांश कवि नेताओं के विरोध में कविता सुना रहे थे, इसलिए, नेता जी को बिल्कुल भी नहीं भा रहे थे । जब उनके भाषण का नम्बर आया तो उन्होंने यूँ फ़रमाया-
इस देश में बिहारी और भूषण की परम्परा का कवि न जाने कहाँ खो गया है, अब तो सत्ता की आलोचना करना ही कवियों का काम हो गया है ।
मैंने कहा- श्रद्धेय, श्रीमान जी, हम आज भी करते हैं आपका पूरा-पूरा सम्मान जी, लेकिन राजनीति में अपराधियों की बढ़ती हुई संख्या एक ही कहानी कह रही है, ईमानदारों की संख्या तो आजकल मुश्किल से दो प्रतिशत ही रह रही है । जब आप इस प्रतिशत को उल्टा करके दिखायेंगे, तो हम भी एक बार फिर से भूषण और बिहारी की परम्परा को निभाएंगे ।
आपके सम्मान में गीत गाएंगे, गीतों में आपका अभिनन्दन करेंगे आपके चरणों मैं सुबह-शाम वन्दन करेंगे ।
- प्रवीण शुक्ला साभार - हँसते हँसाते रहो
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