मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
भारतीय | कविता (काव्य)  Click to print this content  
Author:जोगिन्द्र सिंह कंवल

लम्बे सफर में हम भारतीयों को
कभी पत्थर
कभी मिले बबूल

कभी मिट जाती कभी जम जाती
इतिहास  के  दर्पण  पर  धूल

जिस देश को अपनाया हमने
वह टूट  रहा  फिर  एक  बार


चमन यह बिगड़ा इस तरह
काँटे  बन  रहे  सारे  फूल

- जोगिन्द्र सिंह कंवल, फीजी

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