सपनों ने सन्यास लिया तो पगली आंखों का क्या होगा आंसू से भीगी अखियां भी सपनों में मुस्काने लगतीं।
कितनी ही ददर्दीली श्वासें प्रीत जगे तो गाने लगती। प्रीत हुई बैरागिन भोली श्वासों का क्या होगा।
प्रीत न लेती जनम धरा पर तो सांसों के फूल न खिलते। यमुना जल पानी कहलाता, यदि राधा के अश्रु न मिलते।
झूठी है यदि अश्रु कथाएं तो, इतिहास का क्या होगा तिल तिल जलकर ही दीपक ने मंगलमय उजियारा पाया जितना दुख सह लेता है मन, उतनी उजली होती काया।
पुण्य पाप से हार गए तो, इन विश्वासों का क्या होगा?
- कुसुम सिनहा |